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हरि शंकर गोयल "श्री हरि"

Abstract Classics

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हरि शंकर गोयल "श्री हरि"

Abstract Classics

गीत : सर्दी का मौसम

गीत : सर्दी का मौसम

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लो फिर आ गया है वो ठिठुरती सर्दी का मौसम 

कड़कड़ाती, कंपकंपाती कहर ढाती ठंड का मौसम 

कोहरे की रजाई ओढ़े सूरज देर तलक सोता है

ठंड से ठिठका सवेरा ठहर ठहर कर चलता है 


पानी का नाम सुनते ही सबका दम निकलता है

पत्तों पर जमी ओस और वो पालों का मौसम

लो फिर आ गया है वो ठिठुरती सर्दी का मौसम 

शीतलहर पे यौवन की मस्त फिजां सी छाई है 

अपने साथ में ओलों की बरसात लेकर आई है 

इनसे डरके धूप भी किसी कोने में जा सुस्ताई है

अलाव जलाकर तापने, गरमाने का मौसम 

लो फिर आ गया है वो ठिठुरती सर्दी का मौसम 

तिल गुड़ गजक मूंगफली रेवड़ी के दिन अच्छे आये

खिचड़ी, राबड़ी, गर्म परांठे सबके मन को भाये 

पुए, पकौड़े, चूरमा, बाटी, हलवा सबको लुभाये 

चूल्हे के पास बैठकर खाना खाने का मौसम 

लो फिर आ गया है वो ठिठुरती सर्दी का मौसम 

स्वेटर, जाकेट, कोट, पुलोवर फूले नहीं समाये 

मफलर, कैप, शॉल, स्टॉल की डिमांड बढती जाये 

तीन किलो की रजाई में भी ठंड ना रुकने पाये 

हीटर सारे फेल हुए, चिपक के सोने का मौसम 

लो फिर आ गया है वो ठिठुरती सर्दी का मौसम।


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