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Rajeev Rathi

Abstract

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Rajeev Rathi

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एक वक़्त था वो भी

एक वक़्त था वो भी

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एक वक़्त था वो भी- जब हम अजनबी हुआ करते थे.....

जब हम अजनबी होकर भी अपने से हुआ करते थे ,


जब सिर्फ आँखे उसी को ढूंढा करती थी,

जब ना देखूं उसे तो बेचैनी हुआ करती थी ।


जब सिर्फ आँखों से बाते हुआ करती थी ,

जब सिर्फ एक smile pass से ही जन्नत मिला करती थी।



 एक वक़्त था वो भी- जब हम अजनबी हुआ करते थे

जब हम अजनबी होकर भी अपने से हुआ करते थे,


जब वो हमसे हर राह में मिला करते थे ,

जब वो मेरी हर बात बिना बोले समझ लिया थे ।



जब मेरे झूठो को भी सच समझ लिया करते थे

, एक वक़्त था वो भी- जब हम अजनबी हुआ करते थे ।

 जब एक फ़ोन कॉल से लड़ाई ख़त्म हो जाती थी


जब एक-बार देखकर दिल को तसल्ली हो जाती थी

जब वो हमपर दिल-ओ -जान से मरते थे ,


एक वक़्त था वो भी- जब हम अजनबी हुआ करते थे,

जब हम अजनबी होकर भी अपने से हुआ करते थे I



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