एक मुलाक़ात खुद से
एक मुलाक़ात खुद से
समय बदल गया,
लोग बदल गए।
तन्हाई से मुलाक़ात की
तो दोस्त बदल गए।
रात के अंधेरे मकानों में पनाह ले ली,
सितारों से उधार मुस्कुराहटें,
लतीफे चाँद के,
और बस, मेरी ख्वाहिशें।
ज़हन में अब कोई सवाल नहीं है,
ज़िन्दगी से जंग हुई, पर
बर्बाद खून का मलाल नहीं है।
ना ज़ख्मों पर तरस है,
ना मरहम की ज़रूरत।
ना चाह अपने अक्ष की,
कि दिखे वो खूबसूरत।
हिम्मत बहुत है इन नन्ही सी आँखों में,
खुद को बिखरा कर भी चमकने की भूख है।
माना कि तोड़ा मरोड़ा मैंने इस रूह को,
आसमां की चाह अब भी ज़िंदा है,
भले वो दिखता दूर है।