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Mohit Jagne

Abstract

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Mohit Jagne

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एक जमाना !

एक जमाना !

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एक जमाना था

जहाँ ना कुछ कमाना था

ना कुछ गँवाना था


ना बीते क़ल का ग़म

ना आनेवाले कल की फिकर

बस आज में खुश थे होके बेखबर


कोई नृत्यकार तो कोई संगीतकार

उस जमाने में था हर कोई कलाकार

किसी के हाथ पैर नहीं रुकते थे तो

किसी की आवाज़

सुपरमैन, स्पाइडरमैंन ही नहीं

वहा हर कोई था जांबाज


उस जमाने में थे सवाल कई

पर आज ऊन सवालों के जवाब ही नहीं

मुझे लगाव है उस जमाने से जहां

ना थी किसी चीज की कमी

मुझे लगाव है उस पल से भी

जब उस जमाने को याद करके

आती हैं आंखों में नमी


खुश नसीब है वो लोग जो उस जमाने से ही

माँ बाप के साथ होकर भी मजबूर है

बदनसीबों में होती है हमारी भी गिनती

क्यों की उस जमाने से ही माँ बाप से दूर है


शुक्र है इसी बहाने माँ बाप की

जल्दी याद तो नहीं आती

पर याद आती है उस जमाने की जहां

माँ बाप का प्यार

मिला हर बार

वो भी जितना चाहो उतनी बार !

तो क्या मैं उस जमाने को

बचपन कह सकता हूं ?


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