एहसास से पढ़ो मेरे अल्फ़ाज
एहसास से पढ़ो मेरे अल्फ़ाज
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मेरी कविता को यूँ लब्जों में ना पढ़ा करो
मंजिल तक यूँ आसानी से ना बढ़ा करो
मेरी रचनाओं के जाम के उन प्यासों को
तुम भी महसूस करो इक बार मेरे एहसासों को
मेरी कविता केवल स्याही से लिखी लकीर नहीं
दर दर भटकती हुई कोई फकीर नहीं
पढ़ना होठों से नहीं इस बात का ख्याल रखो
मेरी अक्षर पर दिल और नजर जलाल रखो
मेरी कविता को यूँ लब्जों में ना पढ़ा करो
मंजिल तक यूँ आसानी से ना बढ़ा करो
