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Dilbag Virk

Abstract

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Dilbag Virk

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दोषी

दोषी

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माना कि तुम 

उस दुर्योधन से नहीं हो

जिसने छीन लिया था 

भाइयों का राज-पाट


माना कि तुम 

उस दु:शासन से नहीं हो 

जिसने भरी सभा में 

निर्वस्त्र करना चाहा था 

कुलवधू को 


माना कि तुम 

उस कर्ण से नहीं हो 

जो अहसानों के बोझ तले दबा 

अंध समर्थन करता रहा 

अन्याय और कपट का 


माना कि तुम 

उस शकुनी से नहीं हो 

जो उत्तरदायी था 

लाक्षागृह और द्युत जैसी 

कपटी योजनाओं का 


माना कि तुम 

उस धृतराष्ट्र से नहीं हो 

जो अँधा हो गया था 

पुत्र प्रेम में 


इतना होने पर भी 

यह न कहो 

कि दोषी नहीं हो तुम 

बुरे हालातों के लिए 

क्योंकि तुम 

चुप बैठे हो 


भीष्म, द्रोणाचार्य,

कृपाचार्य की तरह 

क्योंकि तुम 

प्रतिज्ञा नहीं ले रहे 

भीम की तरह 


क्योंकि तुम 

प्रेरित नहीं कर रहे 

अर्जुन को 

गांडीव उठाने के लिए 

कृष्ण की तरह 


यही दोष है तुम्हारा 

इसीलिए तुम 

उत्तरदायी हो सबसे ज्यादा 

इन बुरे हालातों के लिए।


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