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Anurag Mishra

Abstract

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Anurag Mishra

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देश का सन्देश

देश का सन्देश

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बन्धुओं देश का संदेश लेकर आ गया हूँ,

अनुराग हूँ अनुराग का दीप लेकर आ गया हूँ।

श्रवण खोलो हृदय खोलो बुद्धि का हर द्वार खोलो

वीरता की भावना तुम में जगाने आ गया हूँ ।


आज ये पछुआ हवायें देश का यौवन मिटाने को चली हैं,

ये विलासों में पली हैं, सत्य कहता हूँ छली हैं


ये न झोपड़ियाँ उड़ा दे आग इस घर में लगा दें,

इसलिए मैं मेघ बनकर छा गया हूँ,


अनुराग हूँ अनुराग का दीप लेकर आ गया हूँ

कौन हो तुम ? क्या तुम्हारे पूर्वज थे ? जानते हो ?


क्या उन्होने करा दिखाया, क्या उन्हें तुम मानते हो ?

क्या तुम्हारा रूप था, कैसे सुदृढ़ थे वे मनुज,

सच कहो क्या आज तुम पहचानते हो ?


भूल कर वीरत्व सब श्रृंगार सरिता में बह न जाओ

तुम कहीं इसलिए हर भाल पर चन्दन लगाने आ गया हूँ,


अनुराग हूँ अनुराग का दीप लेकर आ गया हूँ

ये अंधेरी रात ! ये दुर्बल विवशता और हम,

संयम रहित भूले हुए पथ

बावरे से कर रहे अपने पुरातन की तबाही।


भूलते ही जा रहे हम आज का सच

तुम कहीं हम में न खोओ हम कहीं तुममें न खोयें,

इसलिए ही देश का संदेश लेकर आ गया हूँ

अनुराग हूँ अनुराग का दीप लेकर आ गया हूँ।


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