देश का सन्देश
देश का सन्देश
बन्धुओं देश का संदेश लेकर आ गया हूँ,
अनुराग हूँ अनुराग का दीप लेकर आ गया हूँ।
श्रवण खोलो हृदय खोलो बुद्धि का हर द्वार खोलो
वीरता की भावना तुम में जगाने आ गया हूँ ।
आज ये पछुआ हवायें देश का यौवन मिटाने को चली हैं,
ये विलासों में पली हैं, सत्य कहता हूँ छली हैं
ये न झोपड़ियाँ उड़ा दे आग इस घर में लगा दें,
इसलिए मैं मेघ बनकर छा गया हूँ,
अनुराग हूँ अनुराग का दीप लेकर आ गया हूँ
कौन हो तुम ? क्या तुम्हारे पूर्वज थे ? जानते हो ?
क्या उन्होने करा दिखाया, क्या उन्हें तुम मानते हो ?
क्या तुम्हारा रूप था, कैसे सुदृढ़ थे वे मनुज,
सच कहो क्या आज तुम पहचानते हो ?
भूल कर वीरत्व सब श्रृंगार सरिता में बह न जाओ
तुम कहीं इसलिए हर भाल पर चन्दन लगाने आ गया हूँ,
अनुराग हूँ अनुराग का दीप लेकर आ गया हूँ
ये अंधेरी रात ! ये दुर्बल विवशता और हम,
संयम रहित भूले हुए पथ
बावरे से कर रहे अपने पुरातन की तबाही।
भूलते ही जा रहे हम आज का सच
तुम कहीं हम में न खोओ हम कहीं तुममें न खोयें,
इसलिए ही देश का संदेश लेकर आ गया हूँ
अनुराग हूँ अनुराग का दीप लेकर आ गया हूँ।
