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Maan Singh Suthar

Others

4.5  

Maan Singh Suthar

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चल कहीं दूर चले

चल कहीं दूर चले

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चलो दूर चले कहीं ऐसी जगह जहां कोई हंसता भी हो

रोने के बारे में किसी ने जहां अब तक सोचा ही न हो। 


क्या ऐसी जगह मिल सकती है आओ चलें मिल के ढूंढें

उगते सूर्य की किरणें सदा हो सूर्य कभी ढलता ही न हो। 


जो बुद्ध को दिखाया था और जो बुद्ध ने फिर सोचा था

न कोई मृत देह मिले और कोई कफ़न पहनता ही न हो। 


ऐसी कल्पनाएं कौन कौन करता है भला कभी बैठो सोचो

आओ चलें कहीं दूर जहां दूरी को दूरी समझता ही न हो। 


मैं पागल हो जाऊं तो सब शून्य और हर विचार की मृत्यु

मैं चाहूं पास या दूर रहना, मन कभी बहलता ही न हो। 


अश्वत्थामा हो के सदियों तक क्यूं भटकता रहना पड़े फिर

कोई जगह ऐसी मिल जाए जहां कोई ग़म को जानता ही न हो। 



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