चारपाई आंगन में
चारपाई आंगन में
पड़ी है एक चारपाई आंगन में
चारपाई पर बैठा इक दौर है,
हम कितनी जल्दी बेचैन से है
और इनका सकूं काबिल ए गौर है।
बैठो उस चारपाई पर
मेरी मानो तो फुर्सत निकाल कर,
इक दौर के सफ़र का सारा
निचोड़ लें जाओगे संभाल कर।
एक दौर के वो भी गरुर थे
हम तुम है गुमनाम वो तो मशहूर थे,
मिट्टी से जुड़े थे आधार उनके
हम तुम जैसी बनावट से वो दूर थे।
चेहरे पर पड़ी झुर्रियां
एक दौर का बहीखाता है,
एक दौर बोता है पसीना
फ़िर इक दौर मुस्कुराता है।
वृक्ष की छांव वृक्ष तक
घर,आंगन,गांव ब्जुर्गों से,
काग़ज़ की नाव खिलौनों तक
ये सीख मिली है तजुर्बों से।
दिन में दो पल बजुर्गों के लिए
हां ये नकली चैट वैट छोड़ देना,
कि बेमतलब से चल रहे सफ़र को
इक प्यारा सा मोड़ देना।