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Kusum Lakhera

Action Others

4.5  

Kusum Lakhera

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भूरी मिट्टी

भूरी मिट्टी

1 min
304


मिट्टी का ऋण कैसे हम चुकाएंगे ?

इस प्रकृति ने जो हमें इतना दिया 

वह आभार सहित क्या वापिस भी दे पाएंगे

ये मिट्टी सृजन का जो गीत गाती है ...

ये मिट्टी जो खेतों खलिहानों में फसलों

के रूप में सोने के कण उगलती है ...

ये मिट्टी नित कितने नवीन रूप बदलती है 

कभी फसल के रूप में अन्न के भंडार भरती है

कभी महल के रूप में खंडहर को भी आबाद करती है

कभी मूर्तियों के रूप में साक्षात ईश्वर का रूप धरती है 

ये भूरी मिट्टी न जाने कितनी वस्तुओं में बदलती है 

प्रकृति प्रदत्त इस मिट्टी में कितने लोग समा गए ...

जीवन चक्र है ऐसा कि कितनी सदियाँ बीती ...

कितने मौसम तब से आ गए ...ज़माना बदला पर 

ये भूरी मिट्टी आज भी वही है....स्वरूप और गुण न बदले 

आज भी मिट्टी यही कहती है कि मानव कितना भी 

कर ले अहम ..पर है तेरा ये वहम ..कि तू है सर्वशक्तिमान

क्योंकि तुझे ख़ुद भी नहीं पता कि तू तो एक दिन मिट्टी में

मिल जाएगा ...

फ़िर इस कंचन काया से क्या ..मोह रख पाएगा ....



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