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Zishan Ahmad

Abstract

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Zishan Ahmad

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बचपन के दौर माँ क साथ

बचपन के दौर माँ क साथ

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नींद कहीं भी आई हो,

सुबह खुद को बिस्तर पर ही पाते थे

किया खूब थे वह बचपन क दिन,

माँ से चवनी मिलते ही अमीर हो जाते थे।


निगाहें लगी रहती थी दरवाज़े पे,

जब तक हम लौट क घर नहीं आते थे

और क्या लिखू माँ के बारे में ?

वह तब भी हमारे सारे दर्द समझती थी

जब हम बोल नहीं पाते थे।


वह बचपन की यादें

और माँ का प्यार नहीं भूल पाएंगे।


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