बचपन के दौर माँ क साथ
बचपन के दौर माँ क साथ
नींद कहीं भी आई हो,
सुबह खुद को बिस्तर पर ही पाते थे
किया खूब थे वह बचपन क दिन,
माँ से चवनी मिलते ही अमीर हो जाते थे।
निगाहें लगी रहती थी दरवाज़े पे,
जब तक हम लौट क घर नहीं आते थे
और क्या लिखू माँ के बारे में ?
वह तब भी हमारे सारे दर्द समझती थी
जब हम बोल नहीं पाते थे।
वह बचपन की यादें
और माँ का प्यार नहीं भूल पाएंगे।