अर्जियां मेरी
अर्जियां मेरी
यूँ तो सुन लिया करता था वो अर्जियां मेरी,
मग़र जब से ख़ुदा कहा है वो पत्थर का हो गया है।
कभी कभी चूम लिया करता था वो जख़्म मेरे,
मग़र जब से मरहम कहा है वो नमक सा हो गया है।
आवारगी से थक कर ठहर लेता था दिल में उसके,
मग़र जब से उसे पता कहा है वो लापता सा हो गया है।
बड़ी राहत मिलती थी उसकी बातें सुनकर,
मग़र जब से उसको सुकून कहा है वो बेजुबां सा हो गया है।
एक वक़्त था जब वो अपना हुआ करता था,
मग़र जब से उसे जहान कहा है वो बेगाना जमाने सा हो गया है।
ज़रा अलग होती थी सख्सियत उसकी,
मग़र जब से उसको रूह कहा है वो इंसा सा हो गया है।
ये सफ़र संग उसके यूंही ख़ुशनुमा कट रहा था,
मग़र जब से उसे ज़िन्दगी कहा है वो मौत सा हो गया है।