अब तक थका नहीं हूँ मैं
अब तक थका नहीं हूँ मैं
अब थक चुका हूं मैं,
परेशानियों ने खूब तोड़ा,
नाकामयाबी ने भी मौका ना छोड़ा,
जिल्लतों ने भरपूर झिंझोडा,
अब इन सबसे थक चुका हूं मैं
दिन ऐसा था जब गैरों में मिला अपनापन,
बेचैनियों में भी सुकून से रेहता था ये मन,
हल ढूंढ लेता था, चाहे कैसी भी हो उलझन,
पर अब थक चुका हूं मैं
एक प्यार था
जो हर हालात में अपने साथ था,
ताकत भी था कमजोरी भी था,
ज़िन्दगी से परे भरोसा उसपे था,
बग़ैर अपने से इंसाफ कि
या हर गलती को जिसने माफ,
मोहब्बत का सबसे नायाब हीरा वो मेरा था,
इस कशमकश मे उसको हार चुका हूं मैं
और अब थक चुका हूं मैं
सुन्न सी हो गई है भावनाएं मेरी,
नासमझी ना-उम्मीद ना-इत्तिफाकी से भरी,
ना गुफ्तगू की गुंजाइश ना मिलने की आस,
लूट चुका है सब जो भी था मेरे पास
निशब्द खामोश अपने अंदर घुट
कर मर चुका हूं मैं
ए जिंदगी अब सच मे थक चुका हूं मैं।
कब ख़त्म होगा ये पहर,
कब होगी अंधेरों मे सहर,
कब मिलेगी वो चेन की नींद,
और अंत होगा ये विन्द
पछतावा और संताप
सब होगा समय के साथ अपने आप
खुशाल सी होगी ज़िन्दगी मेरी
तमाम ख्वाहिशें वो अधूरी
कर पाऊंगा मैं पूरी
हौसला बुलंद कर लड़ सकता हूं मैं,
अब भी उठ कर जीत सकता हूं मैं,
ए खुदा एक इशारा तो कर,
बिखरी हुई ज़िन्दगी को समेट कर
सबको हरा सकता हूं मैं
क्यूँ कि
अब तक थका नहीं हूँ मैं।
