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Sherry ...

Children Inspirational

3.8  

Sherry ...

Children Inspirational

अनोखी पीकू

अनोखी पीकू

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इच्छाओं पर काबू पाना बचपन के संघर्ष और सौतेली माँ की परवरिश ने अच्छे से सीखा दिया था उसे। पीकू नाम था उसका।गोल मटोल छोटी सी ,आँखों में कई बार बड़ी खामोशी से छोटी छोटी ज़मीनी ख्वाहिशों को ज़मीन होते हुए देखा था मैंने। मेरे पास अक्सर आ जाया करती थी, पड़ोस में रहने वाली 15 साल बड़ी दीदी थी मैं उसकी। एक बार याद है मुझे उसके पापा लस्सी लाए थे बाज़ार से, पीकू को लस्सी बहुत पसंद थी, पर पापा ने पूछा नहीं, माँ को दे दिया पूरा ग्लास, वो वहीं दरवाज़े के पीछे छिपकर देखती रही की कबमाँ ग्लास रखकर चली जाएंगी और मैं ग्लास चाट लूंगी, पर माँ ने ग्लास में पानी डालकर पी लिया और उसके बाद वो पांच साल की बच्ची वहां से चुपचाप मस्कुराती हुई चली गई। न पापा से शिकायत की ना माँ से पूछा कुछ। किस्मत ने जिन हालातो में उसे रखा था उसमे या तो इन्सान टूट कर बिखर जाता है या सिमट कर शिखर बन जाता है। पीकू ने दूसरा रास्ता चुना। जिन जिन चीज़ों का अभाव उसे बचपन ने दिया उन उन चीजों को उसने अपनी ताकत बना लिया। शादी से पहले की उसकी पूरी जिंदगी बेहद मामूली और ज़रूरी चीजो के साथ गुजरी, फिर चाहे वो रोटी,कपड़ा, मकान हो, प्यार हो,रिश्तों में आपसी समझ हो या भावनात्मक सुरक्षा। ये सब या तो बेहद कम थे या नहीं थे। खाने की जिन चीज़ों के लिए उसे खुद को समझाना पड़ता था आज वो सारी चीजें उसकी विश लिस्ट से बाहर है। उसका खुद का रेस्टोरेंट है पर उसका खुद का खाना वही हैं अभी तक जो उसके बचपन में उसे मिलता था,पानी सी दाल और मोटे चावल। पहनने को मामूली से मिलने वाले दो से चार कपड़ों ने उसे एक फैशनिस्ट बना दिया। कितने भी पुराने और मामूली कपड़े हो उसके पास वो कला हैं कि कपड़े पुनर्जिवित हो उठते हैं। रिश्तों की समझ ऐसी की जो एक बार बात करले भूल न पाए और जहां तक बात है भावनात्मक सुरक्षा की तो न जाने कितने ही लोग हैं जो जब भी कठिन परिस्थितियों से जूझते है तो उसे याद करते है, उस से बात करते हैं। कभी कभी सोचती हूं कि न जाने कितनी कठिन परिस्थितियों से जूझी होगी वो की आज हर परिस्थिति के लिए उसकी बातो में एक समाधान सा मिल जाता हैं। एक बार मुझे भी समझाया था जब मैं अपने पति के बुरे बर्ताव से परेशान होकर अकेली निकल पड़ी थी। तब उसने मुझे समझाया की क्या हुआ जो पति साथ नहीं दे रहा, उस से पहले तुम खुद तो खुद का साथ दो, पहले तुम खुद तो खुद के लिए खड़ी हो, जब तुम ये सोचोगी की पति साथ नहीं कमजोर पडोगी, पर जब ये सोचोगी की तुम खुद के साथ हो तो तुम एक और एक ग्यारह हो जाओगी और फिर तुम कभी कमजोर नहीं पड़ोगी। क्या कमाल की बात कही थी जो मुझे आज तक संभाल रही हैं। मुझे हाल ही में पता चला कि प्रेम विवाह किया था उसने और इसलिए उसके संकीर्ण परिवार ने साथ नहीं दिया। परिवार छूटा तो पति के पूरे परिवार को गले लगा लिया और उसे अपनी ताकत बना ली। उसे देख पता नहीं चलता कि बहू है या बेटी। अड़चनें यहां भी ज़रूर आयी होंगी क्योंकि उसके पति गर्म मिजाज़, गुस्सैल, अपने मन की करनेवालों में से हैं। उसने कभी बताया नहीं पर मैंने सुना है कि शादी के बाद पति पहले जैसे नहीं रहे थे पर उसने उसके परिवरवालों के साथ अपने रिश्ते पर कोई फर्क नहीं पड़ने दिया और उनकी देखभाल एक बेटी के जैसी ही कर रही हैं। औरतों के लिए आज भी हर क़दम पर संघर्ष होता है उसके लिए भी हमेशा रहा। हमारे समाज में जहां ज़्यादातर पति अपनी पत्नियों को डॉमिनेट करते हैं, मैंने सुना उसके पति भी करते थे मगर आज वो पीकू के कायल हैं और उसके बिना एक कदम न चल पाने का दावा करते हैं। टूट कर बिखर जाने जैसी परिस्थितियों से बाहर निकल कर ना केवल उसने खुद को खड़ा किया बल्कि आस पास के सभी लोगो के लिए सहारा बनी। इस समय वो एक नहीं 3 परिवारों को संभाल रही हैं।उनकी हर तरह की जरूरतों का खयाल रख रही हैं और उसके इरादे आने वाले समय में और बड़े हैं। इतने संघर्षों से गुजरने के बाद भी उसके मन में कोई कड़वाहट नहीं है,किसी के लिए भी। उस से बात कर ऐसा लगता है जैसे उसके जीवन के संघर्षों के ज़हर का उसपर कोई असर न पड़ा हो। वो आज भी उतनी ही कोमल और संवेदनशील है जितनी नाज़ों में पला हुआ कोई जीवन होता है। ज़हर को अमृत बना लेने की कला सीखे बिना ये सम्भव नहीं था, ज़िन्दगी के थपेड़ों ने उसे कठोर नहीं बनाया ये एक अचंभे की बात है।अब कोई परेशानी उसे परेशान नहीं कर पाती और हर एक छोटी खुशी को महसूस कर लेने की उसकी कोशिश कभी कम नहीं होती। सुख दुख मिलना ये शायद नसीब की बात होती होगी, पर हर छोटी सी बात पर जी भर खुश होना कोई उस से सीखे।

मुझे नहीं पता भविष्य में क्या करेगी वो बहरहाल अभी की उसकी रोज़मर्रा की जीवन शैली में कमज़ोर की मदद करना एक अभिन्न अंग है। मुझे अक्सर दिख जाती है वो कुछ न कुछ ऐसा करते हुए,असंगठित समाज सेवा। क्योंकि उसके हिसाब से इस तबके को कोई मदद नहीं मिल पाती। अक्सर उस से बातें करती हूं खुद को ऊर्जा और सकारात्मकता से भरने के लिए और आज भी वैसा ही एक दिन था पर बात नहीं हो पाईं क्योंकि वो किसी दूर दराज के इलाके में गई है हमेशा की तरह अपने सपने का कुछ हिस्सा जीने के लिए, हां उसका बड़ा सपना किसी दूर दराज पिछड़े इलाके में ही सांस लेता है।

मुझे नहीं पता मुझे इस कहानी का क्या नाम देना चाहिए था पर पीकू आज के दौर में अनोखी ही है, जिसके सपने में भौतिक सुख सुविधाओं से ज़्यादा दूसरों को समझने समझाने, हँसने-हँसाने , सुख दुख बांटने के रंग ज़्यादा होते है।


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