किशोर व्यवसायी
किशोर व्यवसायी
अर्जुन के पिता (विवेक कपूर) एक बहुत बड़े बिजनेसमैन है और शहर की उच्च हस्तियों में उनका नाम है अर्जुन की माँ (सरिता कपूर) विवेक के साथ ऑफिस में ही उनकी मदद करती है। इतनी बड़ी कंपनी को सँभालने में बहुत ही व्यस्त रहते है लेकिन इसके बावजूद भी वो अर्जुन को अपनी कमी महसूस नहीं होने देते। वो चाहे कितने भी व्यस्त क्यूँ न हो वो रोज सुबह अर्जुन को खुद ही स्कूल छोड़ कर आते है और छुट्टी होने पर खुद ही उसे लेने जाते है। अर्जुन भी उनके इस हालात को समझता है की इतने व्यस्त होने के बावजूद भी वो मेरे लिए वक़्त निकालते है।
अर्जुन स्कूल से घर आने के बाद अपना ज्यादातर वक़्त चेतन और उसके दोस्तों के साथ बिताता है। चेतन अर्जुन का दोस्त है वो बहुत गरीब होता है और झुग्गी-झोंपड़ियों में रहता है अर्जुन चेतन और उसके दोस्तों के साथ मिल कर बस्ती में खूब मस्ती करता है। उनकी शरारतों से पूरी बस्ती परेशान रहती है। उनकी शरारतें हँसाने वाली होती है। अर्जुन को जितने भी पैसे मिलते हैं वो अपने बस्ती वाले दोस्तों में बाँट देता है और अगर उसके किसी दोस्त के घर पर पैसे की परेशानी होती तो भी अर्जुन उनकी मदद करता है।
लेकिन एक दिन विवेक अर्जुन को उन झुग्गी-झोंपड़ियों में उसके दोस्तों के साथ पकड़ लेता है और घर में लाकर उसे समझाता है तुम्हें उन लोगों के साथ दोस्ती नहीं करनी चाहिए वो तुम्हें बिगाड़ देंगे। रात का खाना सभी इकट्ठा करते हैं फिर वो दोनों अर्जुन को अपने पास लिटा कर सुलाते हैं, उसके बाद वो दोनों अपने कमरे में चले जाते हैं।
दूसरी और विवेक का बिज़निस पिछले कुछ महीनों से घाटे में चल रहा होता है। देनदारी बढ़ती जा रही है और मुनाफा कम होता जा रहा है और उनकी कंपनी के शेयर गिरते जा रहे है। इसीलिए विवेक और सरिता अर्जुन को सुलाने के बाद भी अपने कमरे में बैठ कर ऑफिस का काम करते हैं। एक दिन रात के 1 बजे अचानक अर्जुन की नींद खुल जाती है और वो अपने कमरे से बाहर निकल कर अपने मम्मी-डैडी के कमरे की तरफ जाने लग जाता है की अचानक वो कमरे में से अपने पिता की आवाज सुनता है और वो कमरे की खिड़की से चोरी छुपे उनकी बाते सुनने लग जाता है। अर्जुन के पिता बहुत ही परेशान होते है।
विवेक (सरिता से ) - “सब ख़त्म हो गया कंपनी के शेयर पूरी तरह से नीचे गिर चुके है इन्वेस्टरों ने पैसा लगाने से मना कर दिया और जो इन्वेस्टर्स थे वो अपना पैसा वापिस मांग रहे हैं। अगर ऐसा हुआ तो कंपनी डूब जायेगी। कल एक आखिरी मीटिंग है अगर सभी इन्वेस्टर्स मान गए तो ठीक नहीं तो ये कंपनी बंद हो जाएगी।”
सरिता उन्हें संभालती है और कहती की फिकर मत करो सब ठीक हो जायेगा। ये सुन अर्जुन भी चिंता करने लग जाता है और चुपचाप अपने कमरे में जाकर सो जाता है।
अगले दिन सुबह 8:00 बजे – सरिता अर्जुन को स्कूल के लिए तैयार करती है और कहती है की बेटा आज तुम्हें ड्राइवर छोड़ आयेगा स्कूल, हमें ऑफिस में जरूरी काम है लेकिन अर्जुन को पता होता ही की बात क्या है। अर्जुन ड्राइवर के साथ स्कूल जाने लग जाता है और दूसरी तरफ अर्जुन के माता-पिता दूसरी गाड़ी में ऑफिस चले जाते है। गाड़ी अर्जुन के पिता खुद चला रहे होते है।
फिर एक हादसा जिससे सब बदल जाता है जिस गाड़ी में अर्जुन के माता-पिता जा रहे होते हैं उस गाड़ी का बहुत बुरी तरह से एक्सीडेंट हो जाता है। सरिता की मौके पर ही मौत हो जाती है लेकिन विवेक को बेहोश होता है और उसकी साँसे चल रही होती है उन्हें हॉस्पिटल ले जाया जाता है। हॉस्पिटल में विवेक की तबियत और बिगड़ जाती है विवेक आखिरी साँसे ले रहा होता है। अर्जुन को भी हॉस्पिटल लाया जाता है। अर्जुन डरा हुआ सहमा हुआ अपने पिता के पास जाता है उसकी आँखों में आंसू थे...
उसके पिता तड़प रहे होते हैं वो अर्जुन का हाथ पकड़ते हैं और कहते हैं कि बेटे हम दोनों तुम्हें बहुत प्यार करते हैं। हम हमेशा तुम्हारे साथ होंगे। हमे तुम पर गर्व है बेटे, अब तुम्हें ही सब संभालना होगा। अर्जुन की आंखें अश्कों से भरी होती है इतना कह उसके पिता भी इस दुनिया से अलविदा कर जाते है और अर्जुन उनकी छाती पर सर रख के रोने लग जाता है।
वो अपने हाथों से उनका क्रिया-कर्म करता और उनकी लाश को अग्नि देता। ये पल रुलाने वाला होता। सिर्फ 13 साल की उम्र में उसके सर से उसके माँ-बाप का साया उठ जाता है। इतनी छोटी उम्र में बिना माँ-बाप के जीना बेहद मुश्किल होता है। अब आगे क्या होगा देखने वाला था इतनी बड़ी कंपनी इतना बड़ा अम्पायर और संभालने वाला सिर्फ 13 साल का लड़का।
अपने माँ-बाप की मौत के बाद वो उदास रहने लगा इस बीच कुछ ऐसे सीन देखने को मिलते जो दिल को और आँखों को रुला देने वाले होते। और कुछ दिनों बाद अर्जुन सुबह उठ कर अपने कमरे से बाहर निकलता और देखता विवेक की PP।A (PriyankaPryanka) हाथ में कोट-पेंट लिए खड़ी होती है। प्रियंका अर्जुन के पास आती है।
प्रियंका (अर्जुन से) – आपके पापा को आपके अलावा इस कंपनी में किसी पर भी भरोसा नहीं था और इसीलिए उनकी आखिरी इच्छा थी की अब से इस कंपनी को आप ही संभाले। आपका स्कूल अब आपका ऑफिस ही है। और घबराइयेगा मत मैं हमेशा आपके साथ रहूंगी।
अपने पापा की आखिरी इच्छा को सुन अर्जुन ऑफिस जाने के लिए तैयार हो जाता है। उसे ऑफिस में देख सारे उसे प्यार करते। अर्जुन को उसके पापा के ऑफिस में बिठाया जाता। वो अपने पापा की कुर्सी पर बैठता। कुछ दिन यूँ ही बीतते। धीरे धीरे अर्जुन अच्छा महसूस करने लग जाता। फिर एक कंपनी की बोर्ड ऑफ़ डायरेक्टर की मीटिंग में अर्जुन को भी बुलाया जाता। उसे उसके पापा की सीट पर बिठाया जाता लेकिन था तो वो बच्चा ही वो वहां पर भी बच्चों जैसी हरकतें करने लग जाता। कभी टेबल पर पड़े पानी के गिलास में घूरने लग जाता कभी टाई को खेलने लग जाता और कभी कुर्सी पर झूलने लग जाता।
जिसे देख सारे उस पर हँसने लग जाते और उसका मजाक उड़ाते हुए कोई उसे टोंट मरता है की तुम्हारे पापा मार्केट के कर्जदार थे वो तो स्वर्ग सिधार गए लेकिन कंपनी संभालने के लिए बच्चे छोड़ गए। पर क्या अब बच्चे चलाएंगे इस कंपनी को। उसे ये बात दुखती उसे गुस्सा आता। वो प्रियंका की तरफ देखता।
अर्जुन (प्रियंका से) - ये कंपनी मेरी है और इसका फैसला भी मैं ही लूँगा की कोन ये कंपनी चलाएगा और अब से ये कंपनी मैं चलाऊंगा और मैं चाहता की इन सब लोगों को अभी के अभी इस कंपनी से निकाल दिया जाये।
डायरेक्टर (अर्जुन से ) – ये कंपनी है बच्चे स्कूल नहीं के आज कहा और आज ही निकाल दिया एक महीने का नोटिस दिया जाता है।
अर्जुन (डायरेक्टर से ) – तो दिया! आप सब को आज नोटिस मिल जायेगा और एक महीने बाद आप लोग यहाँ से जा सकते है।
सभी ये सुन हैरान रह जाते और हँसने लग जाते। फिर प्रियंका पूछती है की इन सब की जगह आप किसे रखोगे। अर्जुन सोचने लग जाता है और कहता है वो मैं देख लूंगा। उसी रात को अर्जुन अपने दोस्त चेतन की बस्ती में जाता है जहाँ देखता है की चेतन की माँ को हॉस्पिटल ले जाया जाता है और जब वो पूछता है की क्या हुआ तब चेतन बताता है जहाँ पर मेरे माँ-बाप मजदूरी करते थे उसने एक दम से काम बंद करा दिया और कहीं पर काम मिल नहीं रहा जिस वजह से तीन दिन हमारे घर में खाना नहीं जिसकी वजह से माँ की तबियत खराब हो गयी है अर्जुन को ये सुन बहुत दुःख होता है और चेतन से कहता है की मेरी कंपनी में काम करेगा। चेतन ये सुन हैरान रह जाता है।
अगले दिन अर्जुन ऑफिस में दाखिल होता है और सब देख हैरान रह जाते है। अर्जुन अपने दोस्त चेतन और उसी बस्ती के बाकी 10 दोस्तों को जिनकी उम्र 12-12 साल की होती है उन्हें ले आता है। सभी ने काले रंग के कोट-पैंट पहने होते है। हाथों में ब्रीफकेस पकड़े होते है। आँखों पर काले रंग का चश्मा पहना होता है और पूरे रोब के साथ ऑफिस में चलते हैं। सभी देख हँसते हैं और अर्जुन प्रियंका से बोलता है आज से उन लोगों की जगह पर ये लोग चलाएंगे कंपनी। काम क्या करना था उनके सभी दोस्त ऑफिस में हल्ला मचाने लग जाते हैं क्योंकि वो सब तो झुग्गी-झोंपड़ियों में रहने वाले होते है उन्होंने इतना बढ़िया माहौल पहली बार देखा होता है।
वो शरारतें करने लग जाते है मीटिंग रूम को पूरा तहस नहस कर दिया जाता है पूरे ऑफिस में खलबली मचा देते और यहाँ पर कुछ ऐसे सीन देखने को मिलते है जिससे की हमारी हंसी आने से नहीं रुकती है। स्टाफ को काम करने में भी परेशानी शुरू हो जाती है। और फिर सभी डायरेक्टर मिल कर एक प्लान बनाते है। जिससे की अर्जुन को और उसके दोस्तों इस कंपनी से बहार किया जा सके। सभी डायरेक्टर नकली पुलिस की मदद से अर्जुन को डराते और कहते की जब तक उसकी उम्र 18 साल की न हो जाये तक वो कंपनी में काम नहीं कर सकता और ना ही उसके दोस्त। वो उसे डरा कर कहते की या तो उसे जेल जाना होगा या हास्टल। अर्जुन के जिद करने के बावजूद वो किसी तरह अर्जुन को हास्टल भेज फिर से कंपनी पर हक जमा लेते हैं। उधर अर्जुन हास्टल पहुँच जाता है। वहां पर उसे अपने माँ-बाप की बहुत याद आती है। क्योंकि वो देखता है हर रविवार सभी बच्चों के माँ-बाप अपने अपने बच्चों के लिए तोहफे लेकर आते है। हास्टल में उसके किसी के साथ झगड़ा हो जाता है जहाँ पर वो उसे टोंट मारता है की अगर मेरी शिकायत टीचर के पास गयी तो मेरे माँ-बाप को बुलाया जायेगा। लेकिन अगर तेरी शिकायत गयी टीचर के पास तो तेरे माँ-बाप को कैसे बुलायेंगे। अर्जुन का हास्टल में दम घुटने लग जाता है... उसे हास्टल में पापा के वो आखिरी शब्द याद आने लग जाते की अब तुम्हें ही सब संभालना होगा और वो किसी तरह से वहां से भाग कर अपने घर आ जाता है
उसे अपने माँ-बाप की बहुत याद आती है वो उनका कमरा खोलता है पापा का लैपटॉप ऑन करता है जब कंप्यूटर पासवर्ड मांगता है तो वो जैसे ही अपना नाम भरता उसका कंप्यूटर ओपन हो जाता है। जिससे उसके आँखों में आंसू आ जाते है। उसमें एक वीडियो होती है उसके माता-पिता की जिसे वो देखता है उसकी आँखों में आंसू आ जाते है अचानक उसकी नजर एक फोल्डर पर जाती है जिसमें उसके पिता ने लिखा होता है “MY AIM” अर्जुन अपने पापा के लक्ष्य को पड़ता है जिसमें उसके पापा चाहते है की मेरी कंपनी का नाम विश्व की टॉप 10 एक्सपोर्ट कंपनी में शामिल हो और सोचता है उसके माँ-बाप की आखिरी इच्छा यही थी जो पूरी नहीं हुई अब उसे मैं पूरा करूँगा वो ठान लेता है और उसने जो गलतियां की उसे सुधरने का यही मौका होता है।
ऐसे में अर्जुन चेतन को सब बताता है और चेतन उसे अपने पिता से मिलाता है चेतन के पिता एक छोटे-मोटे हवलदार होते है अर्जुन चेतन के पिता को सारी बात बताता है की किस वजह से उस कंपनी के लोगों ने उसे कंपनी से दूर कर दिया तो हवलदार उसे समझाता है कानून के हिसाब से 18 साल से पहले तुम कोई कंपनी नहीं खोल सकते लेकिन तुम्हारे हालात के हिसाब वो कंपनी तुम्हारी है और कोई तुम्हें इस तरह से दूर नहीं कर सकता और हवलदार अर्जुन को कहता है मैं तुम्हारी मदद करूँगा इसमें तुम फिकर मत करो। हवलदार यही बात अपने सीनियर से करता है और वो लोग अर्जुन के साथ उसकी कंपनी में चले जाते है वहां पर पुलिस उन सभी डायरेक्टर को धमकी देती है मैं हर रोज इस कंपनी में आया करूँगा अर्जुन से मिलने और अगर किसी ने उसे परेशान किया तो उसे सजा मैं अपने हाथों से दूंगा।
फिर डायरेक्टर एक चाल चलते है वो कहते है इसके पापा की कंपनी में हमने भी इन्वेस्ट किया था इसके पापा हमारे भी देनदार है और ये कंपनी के शेयर घाटे में चल रहे देनदार सर खा रहे और प्रॉफिट नीचे गिर रहा है इस लड़के के पास एक महीना है अगर एक महीने में अर्जुन हमारी कंपनी को प्रॉफिट में ले आता है तो हम ये मान लेंगे की अर्जुन इस कंपनी को चलने के लायक है लेकिन उसे ये काम किसी की मदद के बिना करना होगा। अर्जुन उनकी ये शर्त को मान लेता है।
वो अपने पापा के कमरे में जाता वो उनके कंप्यूटर में सारे डाक्यूमेंट्स पढ़ने लग जाता है उसे एक किताब मिलती जिसमें उसके डैड ने इस लक्ष्य को पूरा करने का तरीका बताया होता है वो उसी तरह से काम करना शुरू कर देता है वो दिन रात किताबें पढ़ता रहता बिज़निस को चलाने की। जहाँ उसे मदद की जरूरत पड़ती वहां प्रियंका उसकी मदद करती है। इस बीच कुछ ऐसे सीन भी आते जिसमें उसे बहुत मुश्किलों का सामना करना पड़ता। वो टूटा, गिरता-संभालता और हर मुसीबत के साथ लड़ता लेकिन हार ना मानता। कम्पनी प्रॉफिट में तो नहीं आती लेकिन उनके घाटे की % धीरे धीरे कम हो रही होती है।
एक महीना बीत जाता लेकिन कंपनी प्रॉफिट में नहीं आती। जिसके चलते डायरेक्टर उसे कंपनी से निकालने की अपील करते। लेकिन इसी बीच प्रियंका अर्जुन को बचाने की कोशिश करती। वो सभी कर्मचारियों के सामने कंपनी का डाटा रखती और बोलती की भले ही एक महीने में ये कंपनी प्रॉफिट में नहीं आई लेकिन अगर आप ध्यान से देखो तो Loss की Percentage पहले से बहुत कम हो रही है। सो मुझे लगता है हमे अर्जुन को कुछ और वक़्त देना चाहिए। जिसके लिए सभी मान जाते है और डायरेक्टर्स की चाल फिर से काम नहीं करती।
अर्जुन बहुत अकेला महसूस कर रहा होता है। उसे ये एहसास हो जाता है अकेले ये जंग नहीं जीती जा सकती। उसे ऐसे लोगों की जरूरत थी जो उसी के जैसे काम करे। उतने ही जोश, उतने ही जुनून से। लेकिन उसे कंपनी में कोई इस लायक नहीं दिखता। तो अर्जुन फिर से चेतन और उसी बस्ती के सभी दोस्तों को बुलाता मीटिंग रूम में। अर्जुन उन सब से कहता की मुझे तुम लोगों की जरूरत अपने पापा का सपना पूरा करने के लिए। क्योंकि अर्जुन को मालूम था की भले ही वो झुग्गी-झोपड़ियों में रहने वाले लोग है लेकिन उनमें व्यापार की कला बचपन से ही है क्योंकि वो बच्चे गरीब थे और पड़ने की बजाये वो सामान बेचा करते थे।
सभी छोटे छोटे बच्चे मिल कर कंपनी को मुनाफा दिलाने में लग जाते। सभी दोस्त दिन रात मेहनत करते। धीरे-धीरे उसकी कंपनी के शेयर ऊपर उठने लग जाते है और कंपनी प्रॉफिट में आने लग जाती। जिसे देख सब हैरान रह जाते है। इसी बीच वो सभी दोस्त कंपनी मैनेजमेंट के कुछ ऐसे तरीके सामने लेकर आते जिसे आज तक किसी ने ना देखा हो। कंपनी को प्रॉफिट में लाने के ऐसे फार्मूले दुनिया के सामने लेकर आते है जिसे देख बड़े से बड़े बिजनेसमैन भी हैरान रह जाते है और उनके काम करने के तरीके को देखे देश विदेश के बिजनेसमैन हिल जाते है। उनके तरीके सुनने में बहुत ही बचकाने और बेढंग होते लेकिन उनकी कंपनी की तरक्की की सीढ़ियों पर ले जाते।
अर्जुन और उसके दोस्त भारत में सबसे छोटी उम्र के पहले बिज़नस-मैन बन चुके होते है जिससे खुश होकर भारत के प्रधानमंत्री बाल दिवस के मौके उन सबको सम्मानित करते है। उधर अर्जुन अपने माँ-बाप की फोटो के आगे खड़ा होकर रो रहा होता है और प्रधानमंत्री की तरफ से दिए गए अवार्ड को उनकी तस्वीर के सामने रख देता है।y