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Debashis Bhattacharya

Others

5.0  

Debashis Bhattacharya

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योगी-भोगी

योगी-भोगी

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यह कौन योगी बैठे एकाकी,

आँखों बुझे तो शंस भी रुके,

रुद्राक्ष का माला गले में झुले,

बंद मुख कभी न खुले |


होंगे तापसी तप में डुबे,

सबकुछ छोड़कर पर्वत में बैठे,

इनका दर्शन पुण्य होता,

वैसा महत्मा ईश्वर जैसा |


आंख बंद करके मन को छोड़ा,

पर्वत छोड़कर मन कोई भटका,

कुछ न मिला यही कहता,

न बने योगी, बने एक रोगी।


घर-संसार प्यारा होते,

मिले उर्बसि छोड़ते सारे,

इस पर्वत में ईश्वर न मिले,

हंसना-रोना सबकुछ भूले |


शास्त्र कहता एकेला रहने से,

मिलता ज्ञान शरण लेने से,

हृदय के द्वार क्यों न खुला,

मानब से दूर मानब को भूला |


एकाकी रामु पास में आया,

देखा योगी योग में डूबा,

शिर टेककर प्रणाम किया,

मन ही मन बरदान माँगा |


पापिष्ठ तू जगाया मुझे,

जायगा नरक तप भंग किया,

प्रणाम में गलती रामु माना,

हाथ जोड़कर क्षमा माँगा |


तब भी क्रोध कम न हुआ,

मैं त्यागी तुझे नहीं पता,

तू साधारण होगा भोगी,

असली तप बिगाड़ा तूने,

त्याग की महिमा कितने होते,

तू अनाड़ी कैसे जाने |


अंशु पूँछकर रामु बोले,

होता संसार सबका सार,

बाकी सब होंगे बेकार,

योग में मन लगा न पावे,

उनके योग वियोग बन जाबे,

सृष्टि के कारण संसार होते,

उनमे से योग शुरू होते |


मन योगी के वश में होता,

योगी मन के अधीन न रहता,

उनका मन प्रभु से कहता,

जगत संसार सारे तेरा,

मेरा अहं न ही मेरा,

मैं केवल दास तुम्हारा |


अपने को आप न ही जोड़े,

वियोग हुए योग सारे,

जोड़ते रिश्ते साथ सबके,

देख पाते ईश्वर सब में |


किसान रामु इतना ही जाने,

पर्वत जिनके संसार उनके,

आकाश उनके, भूमि उनके,

सागर-जंगल-प्राणी उनके,

आप उनके, हम भी उनके,

सबकुछ उनके छोड़ते किनके |


पर्वत हो या घर,

शमशान हो या मंदिर,

मनुष्यों या प्राणी,

सबकुछ छोड़ना नहीं पड़ेगा,

छोड़ दो अहंकार |


ध्यान जमाऊँ कीचड़ में,

होंगे मलेमाल,

पर्वत पर बैठे सोचे संसार,

मन हो जाबे कंगाल |


मैं उदासी दास तुम्हारी,

अहं को करो नाश,

जीवन में तू एक ही सच,

न छोड़ो मेरा साथ |


आप जो छोडे में उसे जोड़े,

बिछड़ने से दुखी होता,

जोड़ने से प्रेम पैदा होता,

प्रेम से दुनिया एक हो जाता,

उसी प्रेम से योग सिद्ध होता,

योग से आत्मज्ञानी बन जाता |


पर्वत में दिल पत्थर बनती,

दिल में प्रेम की नदी बहती,

उसी नदी में भक्ति होती,

वही भक्ति ईश्वर चाहती ।


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