परमाण्विक दुःख
परमाण्विक दुःख
वो रास्कोह के पहाड़ों में दिसंबर की एक ठंडी रात थी जो दसकों से आण्विक धमाकों का दर्द झेल रही थी।कोई नहीं जनता था , वो शांत रात जहाँ के वातावरण में निगल जानेवाला प्रबल सन्नाटा प्रसरा हुआ था और जिस रात में वहाँ के कच्चे-मिट्टी के झोंपड़ों के चूल्हों से उठने वाला धुआं किसी के भी द्वारा सूंघा जा सकता था, वो रात एक परिवार के लिए बेहद भयानक रात बन जाएगी...!
गांव में सन्नाटा पसरा हुआ था, मानो कोई वहाँ नहीं रहता, जैसे कोई शापित जगह हो, और जहां के निवासी केवल ग्रेनाइट के पहाड़ और चट्टानें ही हों।
वह मनहूस आधी रात के लगभग 2 बजे थे, जब चीखें गूंजीं थीं और छोटे गाँव की जमी हुई चुप्पी टूटी थी। मुराद के घर से चीखें निकलीं .. मुराद - एक अधेड़ आदमी जो अपनी छोटी बच्ची परी और पत्नी गुलनाज़ के साथ वहाँ रहता था चीखें सुन कर सबलोग वहाँ पर क्या हुआ ये जानने दौड़ आये, या हक़ीक़त में शायद परी या उनके बूढ़े माँ-बाप में से कोई मर गया ये देखने..! चूँकि, पड़ोसियों के लिए तो ये सब रोज़मर्रा की बात हो गई थीं जबसे परी की पुरानी अस्थमा की बीमारी का निदान पता चला था हालाँकि, तब तक, मुराद की बेटी ने ठीक से सांस लेना बंद कर दिया था, लेकिन उसकी धीमी धड़कन को महसूस किया जा सकता था और वह ज़िंदा थी। हर कोई दहशत और असमंजस में था।आख़िरकार , वे लोग गांव से किसी को दूसरे शहर से कार लाने के लिए भेजते हैं, ताकि परी को निकटतम अस्पताल ले जाया जा सके। क्योंकि यह सबसे खराब स्थिति थी जिसमें परी की अब तक देखा गया था ।
वहाँ से निकटतम अस्पताल दलबंदिन में 120 किमी दूर स्थित था। वहाँ के आसपास के गांवों में किसी भी आपात स्थिति के लिए कोई डॉक्टर, क्लीनिक या दवा की दुकान नहीं थी।
लगभग,चालीस मिनट के बाद लोगों ने एक कार को गांव के पास आते देखा। मुराद ने पैसे लेने के लिए ट्रंक की खोज की, जिसे इलाज, दवा, वाहन के ईंधन और अन्य खर्चों के लिए वहाँ दलबंदिन में जरूरत पड़ेगी। उसमे से उसने जो रक़म खोजी वो ३००० थीं, कुछ रिश्तेदारों से लिए हुवे कुल मिलाके सिर्फ ४५०० रूपए थे ... वह अपनी बढ़ती उम्र और त्वचा की समस्याओं के कारण लंबे समय से काम नहीं कर पा रहा था। हाथ में यह रक़म पहले से , परी के इलाज के लिए उधार ले रखी आख़िरकार, कार आ पहुंची और परी को जल्दबाजी में ले जाया गया। शुरू से ही दलबंदिन के लिए कोई अच्छी-उचित सड़क नहीं थी, यह सड़क जो थीं भी वो हर फुट पे टूटी हुई थीं, जिससे उसपे यात्रा करना बेहद ही दर्दनाक हो जाता था । यहाँ, परी के दिल की धड़कन अभी तक बंद नहीं हुई थी, यही कारण था कि उसकी माँ भगवान को धन्यवाद दे रही थी। वह पूरे रास्ते में अपने कांपते होठों और चीखती रोती- आत्मा से बुदबुदाते हुए प्रार्थना कर रही थी परी उसका आखरी आसरा, उनके जीवन का उद्देश्य, उनकी एकलौती बेटी थी।
गुलनाज अपनी नज़रें एक पल भी परी से नहीं हटा पा रही थीं, पिछली सीट पर परी का सिर उसकी गोद में था। 2 घंटे बाद , उबड़-खाबड़ पहाड़ी रास्ते से सफ़र करते हुए, वे दलबंदिन पहुँचे और सीधे अस्पताल गए। वहाँ हर जगह अंधेरा था; अस्पताल जंगल में एक भूत के घर की तरह लग रहा था, जहां कोई भी नहीं रहता हो।
मुराद जल्दबाजी में अस्पताल पहुंचा और इधर-उधर खोजने लगा कि कोई ऐसा व्यक्ति मिल जाए जो मदद कर सके। लेकिन सब व्यर्थ, वहाँ पे कोई भी नहीं था
इस बीच, गुलनाज़ थोड़ी ख़ुशी में चिल्लाई, “वह तेजी से सांस ले रही है; वह अब सामान्य रूप से सांस ले रही है ... हे अल्लाह, हम शुक्रगुज़ार हैं। " परी अब अपनी आँखें खोल और थोड़ा हिला सकती उसने पहले अपनी माँ को देखा जिसकी आँखें नम और स्थिर थीं, उसकी आँखों से आँसू निकल के चेहरे पर से टपक रहे थे। मुराद कार की ओर भागा और अपनी प्यारी बेटी की एक झलक देखने लगा, जिसने अपनी खूबसूरत आँखें खोली थीं। लेकिन फिर वह अभी भी यहां और वहां कोई एक डॉक्टर या अस्पताल के किसी कर्मचारी को खोजने लग गया। नतीजतन, दूर क्वार्टर का एक व्यक्ति जिसके हाथों में टोर्चबत्ती थी, वह उसके पास आया। मुराद ने उनकी बेहद नाज़ुक हालत का वर्णन किया और जल्द से जल्द डॉक्टर को बुलाने को कहा। बदनसीबी से, उस व्यक्ति ने कहा, "मुझे खेद है, लेकिन इस समय यहां कोई डॉक्टर उपलब्ध नहीं है। आपको अपने मरीज को क्वेटा (400 किमी दूर) ले जाना चाहिए ”।मुराद का दिल निराशा में डूब गया, क्योंकि न तो वह आर्थिक रूप से मजबूत था, न ही वह कभी क्वेटा गया था। अपने भाग्य को कोसते हुए, मुराद ने अचानक सुना, गुलनाज की दर्द भरी आवाज़ के साथ रो रही थीं, "ओह.. मुराद यहाँ आओ..., अब अपनी बेटी को किसी अन्य अस्पताल में ले जाने की जरूरत नहीं पड़ सकती, कभी नहीं....!! उसने खुद को दुनिया के इन दुखों से आज़ाद कर लिया.... और जन्नत की अनंत शांति के लिए निकल पड़ी है... अय मुराद...! ख़ुदारा उसे बोलिये .. अपने साथ मुझे भी ले जाए... मुराद ... "
यह सुन मुराद बस जमीन पर गिर पड़ा, उसकी आँखें खुली की खुली रह गईं, जैसे पलक झपकाना भूल गया हों और उसका दिल डूब गया हो...। डबडबाती हुई आवाज के साथ, उसने गुलनाज से कहा, “परी ने खुद पर एक एहसान किया है..., खुदा का शुक्र है कि उसने अपनी मासूम रूह को ले लिया...अब वह अच्छी तरह से सांस ले सकेगी.. । "
वे अस्पताल से चले गए और भोर तक गाँव पहुँच गए। लोग उनकी ओर आ रहे थे, लेकिन जब उन्होंने गुलनाज़ की आवाज़ सुनी, तो अब के; उन्होंने महसूस किया कि परी अब नहीं रही..। हर कोई परी के माता-पिता के लिए खेद महसूस कर रहा था, जो तीन साल पहले अपने और दो बच्चों को त्वचा की बीमारी और कैंसर के कारण खो चुके थे, और जिन्हे बाद में परी के अस्थमा की पुरानी बीमारी का भी पता चला था, वो परी जो इन बूढ़े दंपति जोड़े को एकांत में और पीड़ा में छोड़ चली थी।