मंत्री बंदर मस्त कलंदर

मंत्री बंदर मस्त कलंदर

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गबरू शेर इधर बहुत चिंतित रहता था। उसके जंगल में लगातार आतंकी हमले हो रहे थे। कभी पेड़ों की झुरमुट में तो कभी गुफा में बम विस्फोट होता। उसे लग रहा था कि अब भालू को गृहमंत्री पद से हटाना ही होगा लेकिन फिर किसे गृहमंत्री बनाया जाय? इस पद पर तो कोई तेज और ईमानदार व्यक्ति होना चाहिए। चीता चालाक फुर्तीला तो था, पर था बहुत गुस्सैल। हाथी ठहरा आलसी। सियार तो पक्का चोर था। सवाल था आखिर किसे दिया जाय यह पद?

गबरू गुफा के सामने बैठा नाश्ते का इंतज़ार कर रहा था। अचानक उसे एक उपाय सूझा। उसने तुरंत खरगोश को भेज कुत्ते को बुलवाया और उससे बोला, जाओ, जंगल में डुगडुगी पीट दो।अगले सोमवार को जंगल के सारे जानवर जंगल के बीच वाले बरगद के नीचे इकट्ठे हों। वहाँ एक नया खेल होगा। बरगद की सबसे ऊंची डाल पर एक घड़ा लटका रहेगा। जो भी जानवर बिना पेड़ पर चढ़े सबसे ऊंचा कूदकर घड़ा फोड़ेगा वही मेरा नया गृहमंत्री बनेगा।

बस फिर क्या था? अगले दिन से ही सारे जानवर जुट गये तैयारी में। कोई दूर तक दौड़कर कूद रहा था, कोई ऊंचे टीले पर चढ़कर कूदने का अभ्यास कर रहा था। जानवरों के साथ जंगली मुर्गे और तीतर भी अभ्यास में जुट गये। अब भला पानी वाले जीव कैसे पीछे रहते! मछलियाँ पानी से सिर निकाल निकाल कर उछलने लगीं। कछुए चट्टानों पर से पानी में कूदने लगे। कुछ जानवरों ने तो अपना खाना भी बढ़ा दिया जिससे उनमें ताकत आये, वे ऊंचा कूद सकें।

पूरे जंगल में बस एक जानवर आराम से बैठा था।वह था बंदर। उसे जैसे कोई चिंता ही नहीं थी। वह पेड़ की ऊंची डाल पर बैठ जाता और दिन भर दूसरे जानवरों की उछलकूद को चुपचाप देखता। अगर कोई जानवर उससे पूछता तो वह मुस्कराकर जवाब देता, मैं तो बंदर, मस्त कलंदर, उछलूं कूदूं डाल डाल पर। जानवर हैरान होकर उसे देखते। वह खी खी करके हंस देता।

धीरे धीरे दिन बीतते गये। अंत में वह दिन भी आ गया जिसका सारे जानवरों को इंतज़ार था यानी घड़ा फोड़ने का दिन। सबेरे से ही जंगल में तैयारियाँ हो रही थीं। बीच जंगल में बरगद के पेड़ के नीचे सारे जानवर एक एक कर पहुंचने लगे। सब एक से एक कपड़े और जूते पहने थे। कुछ जानवरों ने तो टोपी और रंगीन चश्मा भी पहन रखा था।

बंदर एकदम सादे कपड़े पहन कर आया था। बस, उसने एक लंबा सा पतला बांस जरूर ले रखा था।चीते ने देखा तो बोला, बांस से घड़ा फोड़ोगे तो शेर तुम्हें कच्चा चबा जाएगा।

बंदर धीरे से बोला, मैं हूं बंदर, मस्त कलंदर। और हंस पड़ा दांत निकालकर।

कुछ देर बाद ही वहाँ गबरू शेर भी आ धमका। उसके आते ही सारे जानवर खड़े हो गये। शेर ने सबको बैठने का इशारा किया और खुद भी एक ऊंचे चबूतरे पर बैठ गया। गबरू के इशारा करते ही खेल शुरू हो गया।

सबसे पहले चीता आगे आया। उसने बरगद की ऊंची डाल पर टंगे घड़े को देखा। फिर काफी दूर तक गया और दौड़ कर उछला पर भद्द से गिरा जमीन पर। कुछ जानवर हंसने लगे। गबरू ने उन्हें डांटकर चुप कराया।

फिर आया सियार का नंबर। वह ज़ोर से हुंआ हुंआ चिल्लाया और उछला घड़े की ओर। पर घड़े तक नहीं पहुंच सका। उसके गिरते ही सारे जानवरों के साथ गबरू भी हंस पड़ा। मुर्गा और तीतर तो सीधे पेड़ पर चढ़ गये। उन्होंने छलांग भी लगायी पर घडे़ तक पहुंचने के पहले ही नीचे गिर गये। मुर्गे की एक टांग टूट गयी। तीतर के पंख गिर गये। फिर तो घड़े तक पहुंचने के चक्कर में कई जानवर गिरते गये। गबरू ने सोचा, लगता है ठीक ठाक मंत्री नहीं मिलेगा। उसी समय बंदर पतला बांस लेकर उठा। गबरू ने उसे रोकने की कोशिश की। बोला, बांस से घड़ा मत फोड़ना।

बंदर मुस्करा कर बोला, मैं हूं बंदर मस्त कलंदर। फिर उसने बांस का एक सिरा खुद पकड़ा। दूसरा सिरा जमीन पर टिका कर उसे हल्का सा झटका दिया। अगले ही पल वह घड़े के पास था। उसने बांस छोड़ा। घड़ा फोड़ा और रस्सी पकड़ कर लटक गया। इस पूरे काम में उसे कुछ ही सेकेंड लगे। उसकी फुर्ती देख गबरू के साथ सारे जानवर हक्के बक्के रह गये। बंदर नीचे आया और हाथ जोड़कर गबरू के सामने खड़ा हो गया।

गबरू बोला शाबाश बंदर शाबाश, तू तो बहुत बुद्धिमान है। बहादुर और फुर्तीला भी। तू ही मेरा मंत्री बन जा।

जो आपकी आज्ञा हो हुजूर, कह कर बंदर उसके सामने सिर झुका कर खड़ा हो गया।

गबरू अपनी जगह से उठा। उसने पास में रखी माला बंदर को पहना दी। सारे जानवर तालियाँ बजाने लगे। गबरू बंदर को गले लगाता हुआ बोला:

ये था बंदर मस्त कलंदर

घूमा करता डाल डाल पर

पर अब मेरे साथ रहेगा,

मेरा प्यारा मंत्री बनकर।


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