लाचार

लाचार

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बड़े भाई साहब यानि कि हर्ष कुमार की घर में बहुत धाक जमी हुई थी। छोटी से लेकर हर बड़ी बात तक उनकी सहमति के बिना नहीं होती थी। फिर चाहे वो सब्जी हो या बिज़नेस। सभी लोगों के मन में उनके लिए भय, सम्मान व प्यार सारी भावनाएं थी। बड़ा सा परिवार, जिसमें दादा - दादी, ताऊ , चाचा अपने - अपने परिवार के साथ रहते थे। बड़े भाई साहब उनके ही बड़े बेटे थे। शाम होते ही घर में आवाज़ें गूंजने लगती थीं," चलो, सब पढ़ने बैठने जाओ, भाई साहब के आने का समय हो गया।" वे भी घर आते ही सबसे पहले बच्चों की पढ़ाई - लिखाई पूछते, चाय नाश्ता पीकर दुकान का हिसाब देखते, घर - बाहर के विषय में बातचीत करते और भी बहुत कुछ..। इसे बड़े परिवार में उनकी अपनी भी एक छोटी सी गृहस्थी थी। सुघड़ पत्नी और दो बेटियाँ। बस जैसा उनका पूरे घर में रौब - दाब था, उससे उनकी अपनी गृहस्थी भी अछूती नहीं थी। भाई साहब सबका हाल पूछते, खोज - खबर रखते सिवाय अपने परिवार के। "मम्मी, पापा हमसे ज़्यादा बात क्यों नहीं करते? ", बेटियाँ अपनी माँ सीमा से पूछती। " बेटा, उन्हें बहुत काम होता है, ना।" सीमा ने धीमे स्वर में जवाब दिया। "मम्मी, काम होने के बाद भी वो सबका पूछते हैं, सिवाय हमारे।" बेटियों के स्वर में विरोध के स्वर सुनाई पड़ रहे थे। "तुम्हें क्या समझाऊं , बच्चों,? वे ऐसा तुम्हारे साथ क्यों करते हैं, मुझे भी नहीं पता। शायद वे ये सोचते हैं कि उनका नाम हमसे जुड़ा होना काफी है, उनका साथ होना नहीं।", सीमा के मन में एक साथ कई विचार आने लगे। उसे नहीं पता था कि वह स्थिति को कितने दिन संभाल पाएगी। समय बीतता गया पर बड़े भाईसाहब हर्ष कुमार की कठोरता नहीं पिघली।

परिवार में कई बच्चे थे, उनके बीच झगड़ा होना स्वाभाविक सी बात थी किन्तु हर्ष कुमार बीच में ज़बरदस्ती पड़ के तुरंत उस बात को ख़तम कर देते थे चाहे वह झगड़ा सिर्फ खेल को लेकर ही क्यों न हुआ हो? "सोनी, तुम चुप हो जाओ, माफ़ी मांग लो। " हर्ष कुमार अपनी बड़ी बेटी से कहते। सोनी बेचारी अपनी ग़लती न होते हुए भी माफ़ी मांग लेती। पर उसके अन्दर धीरे - धीरे गुस्सा भरता जा रहा था। इसी बीच एक अजीब घटना हुई जिसने सब की जड़ें हिला कर रख दी। सोनी की परीक्षा चल रही थी। जूस पीने की बात को लेकर चाचा के बच्चों से झगड़ा हो गया। दोनों को एक ही गिलास में पीना था, छीना झपटी में ग्लास टूट गया और कांच का बड़ा टुकड़ा सोनी के पैर में घुस गया। दर्द से चिल्ला उठी , सोनी। सीमा भागती हुई अंदर से आई। रात में किसी तरह सोनी को लेकर डॉक्टर के पास भागी , कांच निकाला गया और कुछ टांके भी आए। सुबह सोनी की परीक्षा। उसका रो- रो कर बुरा हाल। हैरानी की बात घर के अन्य किसी सदस्य ने इस पर अपनी कोई प्रतिक्रिया नहीं दी, बस शांति से देखते रहे। हर्ष कुमार काम के सिलसिले में बाहर गए हुए थे। अगले दिन जब वह लौट के आए तो उन्हें सारी बात का पता चला। वहीं कहा उन्होंने जो हमेशा कहते थे ," सोनी ,तुम माफ़ी मांगो।" बस सोनी बिफर उठी," नहीं पापा, मैं माफ़ी नहीं मांगूंगी, उनकी ग़लती तो भी मैं झुकूं, मेरी ग़लती हो तो भी मैं झुकूं। अगर आप इतने ही न्यायशील हैं तो न्याय कीजिए। हमारे लिए आपके दिल में कोई जगह नहीं, कोई दर्द नहीं " हर्ष कुमार को जैसे झटका लगा, उनके बनाए साम्राज्य में उनकी बेटी ने ही सेंध लगानी शुरू कर दी थी। उनसे कुछ बोलते ना बन पड़ा। बस उस दिन से दिनों बाप - बेटी में ठन गई थी। वो जो भी कहते, सोनी उसका उल्टा ही करती, ज़बान लड़ाती," आपने हमें कठपुतली बना के रखा हुआ है, मैं नहीं बनूंगी। आपको हमारी फ़िक्र नहीं तो हमें भी आपकी फ़िक्र नहीं। हम तो आपके बच्चे हैं ही नहीं और आप भी सिर्फ नाम के ही पिता हो।" आखिर हर्ष कुमार टूट गए। सब के सामने बिलख - बिलख के रो पड़े," बस कर बेटा, अब और नहीं सहन कर पाऊंगा। पुरुष हूं तो क्या मुझे भी रोना आता है। पारिवारिक जिम्मेदारियों ने मुझे कठोर बना दिया पर तुम्हारी बेरुखी ने लाचार बना दिया। "



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