वनवास
वनवास
सबसे कठिन परीक्षा अपनी
ये भार तुम्हें बाँटना होगा
वन मैं जाऊँ ,और महलों में
वनवास तुम्हें भी सहना होगा
नियति का आदर करके
हर रोज़ नियति से लड़ना होगा
हे उर्मिल ! तुम्हें लखन बिन
महलों में ही रहना होगा ।
निर्भाव शकल की गागर से
दुख समुद्र ना छलक सके
निर्मोही मन , तन पर मगर
साज सँवार करना पड़ेे
सावन इन दो नयनों का
इन नयनों तक रखना होगा
हे उर्मिल ! तुम्हें लखन बिन
महलों में ही रहना होगा ।
अर्धांगी कर्तव्य में
अर्धांग निभाना हे प्रिये
जो मैं ना सेवा कर पाऊँगा
वो पुन्य कमाना हे प्रिये
ये भाग हमारे भाग्य का
भाग्यानुसार निभाना होगा
हे उर्मिल ! तुम्हें लखन बिन
महलों में ही रहना होगा ।
अवधराज के डूबते स्वर की
श्वास में आस पिरोना तुम
रात अवध में घिर रही
रात का सूरज होना तुम
ज्योति बिन दीपक बस मिट्टी
चौदह साल बीतने पर
ज्योति मिट्टी का मिलना होगा
हे उर्मिल ! तुम्हें लखन बिन
महलों में ही रहना होगा ।