उचित नहीं
उचित नहीं
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हे जीवन
तम ही तम से भरा तू
प्रथम रश्मि का आगमन
तुझसे देखा न गया
यह उचित नहीं।
आश्चर्य में हूं ए दुर्भाग्य!
मैं ना हारा
तो मेरे अपने पर प्रहार
यह उचित नहीं।
जटिल हो तू कितना
भय नहीं
भय सिर्फ अपने के भयभीत होने का है।
विधाता सुन!
तपा हूं जिस अग्नि से
उसमे चाहे और तपा ले
पर मेरे अपने पर आंच आए
यह उचित नहीं।
दोष मुझमें होंगे तो आ
सज्ज हूं मैं
दे दे दंड जो देना चाहे
पर मेरे दंड का भागी कोई और बने
यह उचित नहीं।