तिरंगा हर मुल्क में शान से लहराएगा
तिरंगा हर मुल्क में शान से लहराएगा
कैसे कैसे दिन काटेै,
कैसे ख्वाब देखे थे,
कितनी भुकमरी सहें।
पतंगों की उड़ान, इरादे चट्टान सी,
घर के बेदी, खोकले कर दिए इसे।
क्या यही रंग आज़ादी के, दिखलाने थे हमें ?
नासमज की बात तो, समझ में आती है,
पर सुलझे हुए लोग भी, पीट दिखा दिए,
नहीं सोचा, हम सब एक किश्ती में सवार हैं ?
कैसी भूख, कैसी लथ, किस काम की अफसरी ज्ञान,
षड़यंत्र रच, किये विश्वास नीलाम।
खदेड़ दिए थे हम फिरंगियों को मुल्क से,
पर सोच पीछे छोड़ गए,
हिस्सों में बाटना सीखा गए,
आज़ादी की भी, अनेक रंग दिखाई है।
गुलामी से आज़ादी, शेरोने ने दिलाई,
पर समझ बैठे कुछ, इसे अपनी मिलकियत
टोली लिए, लुटे है सरेआम
जमींदारों से थो छूटी,
पर बना दिए दल्ले, निकम्मों और लालचियों के गुलाम।
खूभ नाचे, अयाशी किये,
खिलवाड़ किये 140 करोड़ों की ज़िन्दगीीं से,
खूभ खेल खेला है आज़ादी के नाम।
अब सोचना क्या? लाना हैं ऊँट को पहाड़ के नीचे,
शिवाजी, नेताजी, पटेल, आंबेडकर, चंद्रशेकर, भगत सिंह बनकर
फिर तराशेंगे पहाड़, अनचाहे पत्थरों को निकाल,
उस सोच को, खदेड़ देंगे
हिन्दुस्थान की एकता को, सोच को, विश्वास को
पैरों तले रौंदने वाले, देखना
तिरंगा हर मुल्क में शान से लहराएगा
तिरंगा हर मुल्क में शान से लहराएगा
सारे जहाँ से अच्छा हिन्दुस्तान हमारा।