तड़प
तड़प
1 min
307
बादल बन के दम छाए रहते हो
मग़र बूँद बूँद ही बरसते हो
कभी तो खुल के बरसो
एक मुद्दत हो गयी
सूखी जमीं में दरारें पड़ गयी है
इतना बरसो कि
तुम रिसने लगो दरारों से
बह जाने को जी करता है
तुम्हारे सैलाब में....
यूँ तो अधूरे से ही मिलते हो
मग़र कुछ देर को
मुझे पूरा कर जाते हो
जब बिछड़ते हो
तो भी पूरे नहीं
आधे तो यहीं रह जाते हो
बस मेरे आसपास....
मैं भी तो आधी
चली जाती हूँ
तुम्हारे साथ....
कभी तो बात पूरी हो
अधूरी ही छोड़ जाते हो
हर बार ही
हर बात को
और मुझे....