स्वागत है ऋतुराज
स्वागत है ऋतुराज
खिलती कलियाँ बाग में, महक उठी है शाम
है बसन्त शुभ आगमन, पुलकित सारे धाम।
कोकिल कूके मुग्ध हो, बौराए है आम।
रंगबिरंगे पुष्प है, सुरभित आठों याम।
धूप हो गई गुनगुनी, सिन्दूरी है शाम।
प्रभा करें अठखेलियाँ, छटा लगे अभिराम।
नभ में विचरण कर रहे, विहग मार किलकार।
स्वर्ण सरिस गोधूम है, चलती मधुर बयार।
बैठ राह में प्रेयसी, प्रिय का लेकर नाम।
विरह कथा कहती फिरे, सबसे आठो याम।
दिनकर मज्जन कर प्रभा, लगती नित्य ललाम।
रंग नदी में घोलता, रवि क्रीड़ा अभिराम।
तरुवर नव कोंपल धरे, स्वागत करें बसन्त।
रवि किरणें नर्तन करें, हुआ शीत का अंत।
पुलक उठी कवि की कलम, शब्द करें है शोर।
आये हैं ऋतुराज जो, नाचे मन के मोर।