सुबह की धूप
सुबह की धूप
आनंदित उर को करे
मधुर सुबह की धूप
स्वर्णिम रश्मि दे रही
जग को अनुपम रूप
हरित वसन वसुधा सजे
तुहिन मोतियन माल
चूँ चूँ ची ची बोलके
खग कुल करे निहाल
शुभ्र रजत लिपटे हुये
पर्वत लगते भूप
स्वर्णिम किरणे दे रही
जग को अनुपम रूप
खन खन कर बजने लगा
खेतो से मृदु साज
कोकी कोयल बुलबुले
करती मधुर आवाज
रजनी तारा घट लिये
बोरे अम्बर कूप
स्वर्णिम किरणे दे रही
जग को अनुपम रूप
कलियाँ दृग को खोलके
देती है मुस्कान
तितली भोरे देख इन्हें
आनंदित भरे उड़ान
हर जन भी संकल्पित होके
सपनों को देता स्वरूप
स्वर्णिम किरणे दे रही
जग को अनुपम रूप
बाग, झील, उपवन, नदी
यौवन की दहलीज
वन पर्वत घाटी समतल
लगे सुंदरता के बीज
प्राची क्षित लाली लगे
किसी दुल्हन का प्रतिरूप
स्वर्णिम किरणे दे रही
जग को अनुपम रूप
धरती दुल्हन सी लगे
पा नभ प्रिय का स्पर्श
परिवर्तन दिखने लगे
पाके दिनकर के दर्श
खग मृग संग जग भी लगे
सबको अपने अनुरूप
स्वर्णिम किरणे दे रही
जग को अनुपम रूप
