पथिक
पथिक
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पीहू मुग्ध मधुर स्वर से,
क्यों आज गा रही है?
तान तेरे सुन सुन के,
हरियाली मुस्कुरा रही है।
किस डाल पर बैठी तू,
नज़र नहीं आ रही है।
किस राग में अनुराग तेरी,
जो कानों को भा रही है।
धूप में थोड़ी नरमी है,
स्वेद पवन में घुल रही।
टूटे पत्तों में स्फूर्ति है,
वट की जटाएं झूल रही।
पर्ण भेदी तीक्ष्ण किरणें,
नयनों को चौंधिया रही हैं।
मृदुल लोरी सुन सुन के,
नींद सी आ रही है।