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Ashi Pratibha

Abstract

4  

Ashi Pratibha

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परिवार बिना अधूरे हैं

परिवार बिना अधूरे हैं

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हँसी खुशी के गोलगप्पे दिनभर,

सपने सभी यहां सुनहरे पलते हैं,

दादा दादी की डांट पड़े फिर भी

प्यार सभी एक दूजे को करते हैं !

जीवन का सुख-दुख बाटे अपना

मात-पिता की छांव में यहां पलते हैं।


परिवार बिना है सब सुना सुना

त्योहार भी अब कहां बनते हैं,

खाली पड़े हैं सारे शीश महल

दिवाली में दीप कहां उतने जलते हैं,

कितने भी मॉडर्न हो जाओ पर

परिवार बिना, कहां ठीक से पलते हैं।


रिश्तेदारी, दोस्ती यारी सब अब

दिखावे से है सब भरा हुआ,

सुबह शाम बस इंटरनेट है,

अब दोस्ती यारी एक किस्सा है !

बिना परिवार दूर हुए हैं सबसे

यह वर्तमान का एक हिस्सा है।।


कांच के बने इन शहरों में

पक्की माटी के हे मकान

धूप बहुत यहां पर रहती

छांव का नहीं है कोई निशान !

ना परिवार का प्रेम यहां पर,

न ही आए अब कोई मेहमान।।


विषम परिस्थिति में भी मन में

सकारात्मक विचार आ जाते हैं !

मात पिता के आशीष लेकर

होते सभी काम पूरे है !

नोक झोंक तो चलती रहती

पर परिवार बिना हम अधूरे हैं।।


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