Poem on Father:
Poem on Father:
माँ की ममता को तो, सब ने ही स्वीकारा है
पर पिता की परवरिश को, कब किसने ललकारा है !
मुश्किलों की घंडियों में अक्सर, मेरे साथ खड़े थे वो
मेरी गलतिया थी फिर भी, मेरी खातिर लड़े थे वो !
कमियों की अहसास, मुझको कभी तो हो न पायी
कपकपा कर सोते थे वो, मेरे ऊपर थी रजाई !
माँ की गोदी की गर्माहट, के बराबर उनकी थपकी
कंधे उनका बिस्तर मरी, आंखे हलकी सी जो झपकी !
उनके हौसलों ने कभी न, आँखें नम होने दिए है
जितने थी मेरी जरूरत, सबको तो पूरी किया है !
उनकी लाड में जो पाया, थोड़ी कड़वापन सही
मेरी खातिर मुझे डाँटा, था वही बचपन सही !
जिंदगी की दौड़ में अब, अपने पारों पर खड़े उनके
जज़्बातों की बदौलत, मुश्किलों से हम लड़े !
सर पे उनका साया जब तक, चिंता न डर है कोई
उनके कंधों की बदौलत बढ़ रही है जिंदगी !