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Bhavna Thaker

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Bhavna Thaker

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ओ संदली

ओ संदली

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उंगली से उलझी 

उंगलियां सुलझा कर 

बाहों की लड़ीयों में तन तेरा पिरोकर

होले से चूम लूँ दो 

मिश्री से मीठे लब 


पलकों को ढ़कती ज़ुल्फ़ों से खेलूँ 

कानों पर बिखरी लटें संवारते 

अब्र से तन को शब भर सहला लूँ 

कानों में गुनगुनाऊँ 

ओ संदली मैं नाम तेरा 


धीरे से उनिंदी आँखें तुम खोलना 

कायनात की कुंडी 

आदित खड़काएगा 

उठते ही पलकें खेलेंगी रश्मियां  

बादलों के झुरमुट से बहती उतरती


सागर की पसरी बाहों में झूलती 

भोर तब खिलेगी धरती की गोद में कहीं

उठना तुम अंगड़ाई लेते

हरसू मंद मोगरे की लडीया बरसेगी।


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