नया समां
नया समां
चलो बांधे कोई नया समाँ हम झूम झूम कर जियें
अंगूरी छोड़ गैरों के गमों के चँद घूंट भी पिये।
गरीबों के तूटे फूटे आशियानों के बुझे हैं दीपक
अपने दिल में दिया जलाकर घने घने अंधेरों से जूझें ।
अतड़ियों की आग बुझा कर मीठी तृप्ति की डकार सुने
फैलाये सुगंध अपनेपन की नेकी और प्रेम की चादरें बुने
मिशाइल बोंब चक्कू छूरी को गर्म लहू का स्वाद न चखायें
आओ ब्रम्हांड को मानवता के लाल लाल गुलाल से रंगे।
