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निखिल कुमार अंजान

Others Tragedy

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निखिल कुमार अंजान

Others Tragedy

मोहब्बत

मोहब्बत

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किसी को ख़ुदा मान के क्या झुक गए

किसी की मोहब्बत देख क्या रुक गए

पैगाम जिंदगी का समझ क्या पढ़ गए

साहब हम तो ख़ुद की खुदी से हट गए


माना कि ख़ुदा का दिया है हमने उसको दर्जा

फिर क्यों रहमत के लिए तरसे उसका बंदा

आस जो अब हम लगाए तो उसमे ग़लत है क्या

नज़रे मिला के नज़रे न मिलाए तो उसकी रज़ा है क्या..


मोहब्बत को हमने जब तलक न गले लगाया

सुकून से भरे हर पल और चैन का था साया

मैं तो अपनी ही खुदी से हट गया

मोहब्बत देख उसकी क्यों रुक गया..


ग़लती की ये हमने पैगाम जिंदगी का समझ पढ़ गए

माना था जिसको ख़ुदा उसके हाथों ही लुट गए

चिट्ठी किसी और की अपनी समझ पढ़ गए

लुटना तो था ही देख उसको जो ठिठक गए...


मोहब्बत का दरिया कुछ ऐसा ही होता है

हँसी आती है ज़बां पर और दिल रोता है

लेकिन साहब यँहा थोड़ा टिवस्ट है

ये जो दिल है ना बच्चे का सा होता है

कल फिर किसी और टॉफी को पाने के लिए

हाथ फैलाए खड़ा होता है...


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