मामा का घर
मामा का घर
आज मेरा आँगन हुआ रोशन
आई है एक बेटी खुशियों की बहार लेकर।
मामा ने ये कहकर मुझे गोद में लिया था
जब मामा के घर मेरा जन्म हुआ था
जिम्मी कहकर बड़े प्यार से सब ने मझे पुकारा
कोई बोले यूरोपियन तो कोई बोले मुझे अप्सरा।
हर साल छुट्टियों में जाते थे वो घर
अब जाना होता है जब हो कोई अवसर।
ये नहीं है सिर्फ़ इंट, पत्थर, का छोटा मकान
कुछ बचपन की यादें, कुछ आज भी है बंधन।
बचपन में खेली थी मैंने खूब अठ्खेलिया
पड़ोस में बन गए थे दोस्त, जुड़ चुकी थी रिश्तेदारियां।
चीड़ जाती थी मैं वो लड़के वाले नाम से
जब बचपन में मुझे थे बुलाते।
आज भी वहीं नाम से है पुकारते
पर अब एक हल्की सी मुस्कान है आती।
अब तो अक्सर ही जाना होता दाख़िल होते ही याद है आती
वही सीढ़िया, वही आँगन, जहाँ पर मैं खेला करती थी।
आज भी महसूस होती मुझे वो कमी, याद आती है वो डगर
आज भी उतना ही प्यारा है मामा का घर।
