लौटा दो
लौटा दो


अकसर ऐसा होता है
अकसर ऐसा होता है कि
जब हम अकेले हो जाते हैं
दिमाग चिंतन प्रक्रिया से अलग हो जाता है
मन बर्फ की तरफ जम जाता है
और हृदय आनन्द से विभोर हो जाता है
हमारी जिज्ञासा हमारे पास चली आती है
जैसा कि आज आयी हुयी है
कह रही है यूँ ही आनन्द में
डूबे रहोगे या
कुछ काम धाम भी करोगे
याद है माँ ने कहा था
मैं तुम्हारी माँ हूँ लेकिन
तुम्हारी कोई सहायता नहीं कर सकती
और ये भी जिसका जो लिये हो
लौटा दो
यह कह कर चली गयी
तब से मैं सोच रहा हूँ
किसका क्या लिया है मैंने
और कुछ याद भी आया तो
समझ नहीं पा रहा हूँ लौटाऊं कैसे
और मन जो जम कर बर्फ हो गया था
पिघलने लगा है आहिस्ता आहिस्ता
हृदय जो आनन्द से विभोर हो उठा था
कुछ और अद्भुत सा
महसूस करने लगा है कि
जो मुझे नहीं चाहिये
वो क्यों दे जाते हैं लोग।