कर्मों की आवाज़
कर्मों की आवाज़
एक ऐसी आवाज़ होती है जो बड़ा दूर तक जायेगी
नभ को चीरती हुई ब्रम्हांड के एक छोर से
दूसरे छोर तक वो अपनी पहुंच बना जायेगी
ना बनती इंसान तेरी शोहरत तेरे नाम से
ये आवाज़ ही तुझको वो शोहरत दिलायेगी
अगर तू मशहूर नहीं है इस जहां में
ये आवाज़ ही तुझको मशहूर करायेगी
बस करने लग जा तू अपने कर्म को इतनी शिद्दत से
मिल बुद्धि - भक्ति के साथ तुझको मुक्ति दिलायेगी
ये कर्मों की आवाज़ है विधाता के कानों तक जरूर जायेगी
जब कर्मों को अपनी निष्ठा से है अपनाता
ऊपर वाला ऐसे इंसान में अपनी श्रेष्ठता है बसाता
वो तो अपने हर काम शिष्टता से है कर जाता
ऐसा कर वो प्रकृति की मेहर को है पाता
प्रकृति का नियम है जो गुरुत्वाकर्षण उसकी मदद है करने लग जाता
कर्म भक्ति के कारण स्वयं विधाता उसकी तरफ खिंचा चला आता
कर्मों का विज्ञान है ही ऐसा जिसको समझ है आता
वो कर्मों की आवाज़ से अपने नसीब को है बदल जाता
भागवत गीता के ज्ञान का भी यही सार है
जो समपर्ण करे कर्म का लगा बुद्धि भगवान में
इसी में उसके जीवन का प्रसार है
जिसने कर्मों की महिमा को समझा
फिर वो पाता श्री कृष्ण का प्यार है
कर्म करता जो अज्ञान में फिर ये सब बेकार है
करले कर्म तू मन - बुद्धि से ईश्वर के लिए
फिर तेरा नाम भी योगियों में शुमार है
कर्मों की आवाज़ होती है ऐसी ही
जिस पर खुद ख़ुदा निसार है।