कन्या भ्रूण हत्या,आखिर कब तक
कन्या भ्रूण हत्या,आखिर कब तक
समाज की क्रूरता या कहें फूहड़पन
आज भी कहीं ना कहीं दिखाई दे ही जाती है
बेटों के जन्म पर बांटी जाती हैं मिठाइयाँ
और बेटियाँ गर्भ में ही मरवा दी जाती है।
सदियों से चली आ रही इस अमानवीय कुप्रथा पर
नहीं लग पाया है आज तक पूर्ण अंकुश
बेटा और बेटी दोनों हैं कुल के दीपक
तो क्यों बेटियों की ही रोशनी बुझा दी जाती है।
स्वार्थों की वेदी पर बलि चढ़ाकर क्यों
छीन लिया जाता है बेटियों के हिस्से का हक
आखिर क्या गलती है बेटियों की
जग में आने से पहले क्यों उसे विदाई दे दी जाती है।
उसे भी हक है किसी को माँ कहने का
भाई की बहन पिता की लाडली कहलाने का
फिर क्यों रिश्तों में बंधने से पहले ही
वो बेटियाँ हर एक रिश्ते से काट दी जाती हैं।
क्रूरता से परिपूर्ण इस करतूत पर क्या
थोड़ी भी शर्म नहीं आती है उन कसाईयों को
मां, पत्नी, बहन स्वीकार है, फिर बेटियां क्यों नहीं
क्यों उसको ही आखिर ये सजा दी जाती है।
बेटियाँ भी तो अंश है खानदान का
क्यों ईश्वर के दिए इस उपहार का अपमान कर
एक नन्ही कली जो माँ की आँखों का खूबसूरत ख़्वाब है
आग में क्रूरता पूर्वक झोंक दी जाती है।
बेटियों का जीवन भी तो है बेटों के समान
दोनों को हक ही तो मिलना चाहिए एक समान
फिर क्यों बेटे की चाहत में बेटियों की किलकारी
आँगन में आने से पहले दबा दी जाती है।
कानून तो बना भ्रूण हत्या के खिलाफ
फिर भी चोरी छुपे होता आ रहा है यह महापाप
बेटियाँ तो आधार है इस जीवन का
फिर क्यों समाज द्वारा बेटियाँ ठुकरा दी जाती हैं।
बेटा अगर गीत है तो बेटियाँ भी तो जीवन संगीत है
जिससे खिलखिलाता हमारा घर-आंगन
फिर क्रूरता के इस जुनून में भ्रूण हत्या कर
आँगन में आती ये ज्योति क्यों रोक दी जाती है।
आखिर क्यों बोझ लगती है बेटियाँ
आज इस संपूर्ण जगत में नाम कर रही है बेटियाँ
ना समझो मजबूरी बेटियों को जग में लाना
दो वंशों को चलाने वाली बेटियाँ ही तो होती हैं।
मुरझाने ना दो इन कलियों को खिलने दो
बेटियों को भी हक है जीने का इन्हें जीने दो
काटो ना इनकी डोर को रिश्तों से
रिश्तों को प्यार से बांधने की डोर बेटियां ही तो होती हैं।