किरदार
किरदार
किसी कश्ती में सवार,
कुश्ती सी लड़ती रही ज़िन्दगी की पतवार,
साहिल की तलाश भी ख़ुद करनी थी।
मखौल उड़ाया लोगों ने,
अबला नहीं हूं,
किस पन्नों पर लिखा था,
बर्बाद नहीं हूं,
आबाद तुमको कर,
सलाम खुदी पर करती हूं।
कुशल गृहिणी की प्रदर्शनी लगाई,
पतिव्रता की भूमिका निभाती नजर आती।
व्रत तीरथ कर लंबी उम्र की
कामना कर कर्तव्य की मूर्ती बन,
मां बन कर ज़िन्दगी में हिस्सा
बन अर्धांगिनी की मिसाल
क़ायम करती नज़र आई।
फिर भी अकेले ही दूरी तय
करती अपनी पहचान को
गठरी में लपेट कर पानी की तह तक डुबो आई।
ख़ुद की ज़िन्दगी को जन्म मरण से दूर,
किस घर की तरफ इशारा करती।
किरदार बदल बदल कभी
बेटी, बीवी, बहू, मां जीती रही।
औरतों की उम्र पर सवाल किये जाते है,
हँसीं ठहाकों में मज़ाक भी उड़ाए जाते है।
ये सवाल था का ज़वाब वो,
तब दे पाएंगी जब उम्र के हर,
पड़ाव को पार करती
ख़ुद के लिए कितना जीती है,
वो हिसाब कर पाएंगी।
