कई बार ऐसा हुआ है
कई बार ऐसा हुआ है
कई बार ऐसा हुआ है
घर पर कोई नहीं हुआ है
मैं और मेरे ग़म मिले हैं तन्हाइयों में
रोये हैं जार जार तन्हाइयों में
बड़े बोझिल हुए हैं
भीड़ में तन्हा हुए हैं
आग हो चुकी है राख
आंसू हो चुके हैं खाक
यहीं कहीं अवशेष बिखरे हुए हैं
न जाने तुमने क्या देखा मुझमें
चांद, सूरज कह दिया मुझे
पढ़ना नहीं आता, तुम्हें मौन संवाद
गौर से देखो, कितने श्मशान फैले हुए हैं
मुझे तन्हा छोड़ दो, मनाने की कोशिश मत करो
इन द्वारों पर कीले लगे हुए हैं
राख तो राख है, ज्यादा है तो खाक है
क्या हासिल होगा मुझसे
खाक के पीछे क्यों लगे हुए हो
मुझे अब चैनों सुकून कब्र में ही आना है
कफ़न ही डालना है तुम्हें
मुझे मुर्दा हुए तो बरसों हुए हैं
दिया जलाने की भी बेकार कोशिश मत करना
तुम्हें पता नहीं, तूफ़ानों के सिलसिले हुए हैं।