ख्वाबों का शहर
ख्वाबों का शहर
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मन के गगन में पंख फैलाए,
काफिला ख्वाइशों का उड़ उड़ जाए,
अरमान है ये की छूलूं ए - चांद तेरे परछाई को ,
जो मुझे दूर सपनो के शहर ले जाए।
बड़ी अनकही है ये ख्वाबों का शहर ,
पर ये कशिश है तेरे उल्फत की,
जो अल्फाजों में बिखरे भावनाओं का लहर।
ख्वाबों ख्वाइशों का रंजिश है ये,
रुकसत ना होती सीने से,
बारिश के बुलबुले जैसे उमड़ते रहते,
पल दो पल की मेहमान है जैसे।
पल दो पल ही सही
उसे अपनाना नही है मुझे इनकार,
शिद्दत से अगर सजदा करूं उनकी,
हकीकत में होगी उनसे दीदार....