जय श्री राम-------
जय श्री राम-------
खुद चुना जिस धरा को
भवन धाम ने
जिस धरा पर लिया खुद जन्म राम ने
ये वही भूमि है हम जहां खेलते
जिसके कण-कण में खेले हैं घनश्याम ने
जिस धरा पर ----
ना हिमालय कहे मैं ही पहचान हूँ
ना तो गंगा कहे मैं ही श्रेष्ठ हूँ
फिर भी देखो समर्पित इस भूमि को
है अडिग देख अरावली वाम में
जिस धरा पर -----
ना ताजमहल कहे मैं मोहब्बत की शान हूँ
ना तो यमुना कहे मैं ही विशिष्ट हूँ
फिर भी देखो समर्पित श्री राम को
राजकाज छोड़ अडिग रहे अपने वचन निभाने को
जिस धरा पर -----
विभीषण को भाई मानकर
शबरी के खाए झूठे बेर अहिल्या का उद्धार किया
दीया भक्ति का प्रतिदान
ऐसे समर्पित श्री राम को कौन नहीं पूजे बार-बार
जिस धरा पर -----
धोबी की बात मानकर किया सीता का परित्याग
मर्यादा की रक्षा के लिए किया चौदह वर्ष का वनवास
ऐसी समर्पित मर्यादा पुरुषोत्तम राम को कोटि कोटि प्रणाम
जिस धरा पर ---
