ज़िन्दगी रूह की मोहताज
ज़िन्दगी रूह की मोहताज


ज़िन्दगी रूह की मोहताज है,
यूं न इतराओ,
की साथ जो छूटा उसका,
तो फिर न पछताओ,
महताब रहो, हर ख्याल के तुम,
के यूं न ठुकराओ,
जज़्बातों को अपने समेट कर,
तुम बस सहलाओ,
मुमकिन है, गर्दिशे बादल भी आएं,
पर तुम ना घबराओ,
यह वक्त की बिसात पर, इम्तेहान है,
बस बढ़ते जाओ,
अपनी अलग इक पहचान,
तुम भी बनाओ,
मगर, भूले ना रूह से रिश्ता,
चाहे मिट्टी में, मिल भी जाओ।।