इंसानियत
इंसानियत
ना है कोई फर्क पंछी इंसान में,
है घर सबका यहीं
तकदीर का नायब खेल तो देख
वक़्त ले आया है साथ सभी।
ना काम रहा है तू,
है मेरा भी हिस्सा इसी में
होंगे साथ खड़े हम
कुदरत की इस घड़ी में।
ना खुले है दरवाज़े मस्जिद मन्दिर के
ना दिखाई दिया है पीर कोई
ये लड़ाई है खुद की खुद से
आ जोड़े दिल इस मुश्किल में।
बांधे जो हौसला सबका,
हो एक धागा ऐसा
पिरोया हो जज़्बा जिससे
लिखा हो ऐसा नसीब।
करीब नही है आज एक दूसरे के
लेकिन कल होगा इतना हसीन
जीत होगी इस क़दर
कि ना हारेगा कोई कभी।
बात ये कुछ दिनों की नहीं
प्रण ये ज़िन्दगी भर का है
सीख है ये इंसानियत की
प्रकृति को हमे संवारना है।