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Beena Mishra

Abstract

2.5  

Beena Mishra

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होली उसे कहो...!

होली उसे कहो...!

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जब रंग रमे रस अंग-अंग भींगे

तब होली उसे कहो

जब हृदय हरित-हरित हो फिर 

तब होली उसे कहो


जब फागुन वही बयार बहे

तब होली उसे कहो

जब प्रिय का फिर अभिसार मिले

तब होली उसे कहो


जब नैन,अधर कंपित हों फिर 

तब होली उसे कहो

जब मौन, मूक को शब्द मिलें

तब होली उसे कहो


जब वाद्य ध्वनित हों गात-गात

तब होली उसे कहो

जब विरह-मिलन हों आत्मसात 

तब होली उसे कहो


जब तृषा तृप्त हर हो जाए

तब होली उसे कहो

जब व्यथा विकल हो मुस्काए

तब होली उसे कहो


जब बन-बन दहक उठे पलाश

तब होली

उसे कहो

जब गुँथ जाए पत्तों में श्वास 

तब होली उसे कहो


जब लाल भरम में पड़ जाए

तब होली उसे कहो

जब गाल-गाल चढ़ इतराए

तब होली उसे कहो


जब काला कुलिश प्रहार करे

तब होली उसे कहो

जब घृणा, द्वेष संहार करे

तब होली उसे कहो


जब रंग वैजयंती अमलतास

तब होली उसे कहो

जब हर मन की पूरी हो आस

तब होली उसे कहो


जब दुखिया के घर रोटी हो

तब होली उसे कहो

जब मुनिया नींद भर सोती हो

तब होली उसे कहो


जब रंग वही रंग बन जाएँ 

तब होली उसे कहो

जब ऐसी होली फिर आए

तब होली उसे कहो।


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