होली की चाहतें
होली की चाहतें
चलो न! होली इस बार ऐसे मनाते हैं,
ख़्वाबों ख्वाहिशों को सतरंगी बनाते हैं,
रंग पसंद का अपनी चुराना उनसे तुम,
मुझको तो रंग सिर्फ़ तुम्हारे ही भाते हैं।
ओढ़कर सुनहरी रंग टेसू के गुलों का,
मखमली सी महक में डूब जाते हैं,
जिस्म के रंग उतर जाएंगे कल परसों,
बरसों से बेरंग इन रूहों को रंगाते हैं।
गुझिया ठंडाई मानिंद मीठी मुहब्बत में,
नाता नमकीन सा इक बनाते हैं,
झंकार पर धड़कनों की थिरककर,
होली की मस्ती में डूब जाते हैं।
चाहत में अपनी रंगना गुलाबी मुझे,
अबीर से अरमां बिखरना चाहते हैं,
इश्क़ की हो इबादत भांग की ख़ुमारी में,
सुर्ख़ इबारतें फुहारों पर लिख जाते हैं।
