घर की लक्ष्मी
घर की लक्ष्मी
मीठे के बदले तीखा चुनती
हर रस को पहचाने
चुटकी भर सिंदूर के बदले
जन्मों का बंधन बाँध लिया
कोमल घर बाबुल का छोड़ा
निर्झर ज़मीन को दोहे
नारी कण-कण घर को जोड़े
पुलकों से सिंचित हरियाली
भैया की वो लाड़ दुलारी
नींद के सूने निलय में भरती
स्वर्ण स्वप्न की लड़ीयाँ
बन्दी अपने आशियाने में
तृप्ति का संचार सिंचती
ममता भर लोचन में
अपनों की सेवा में पल पल
निश्वास निरंतर भरती
मूक नैंनो से सस्मित वदन
झंकार जीवन में भरती
एक खुशी का लघु क्षण मांगे
खुद के निर्वाण की खातिर
तिमिर की हकदार नहीं
कुछ धूप के टुकड़े दे दो
पीड़ा की रेखा चहकेगी
अमिट प्रेम सुधा बरसेगी
आलोक सुशोभित सुरभित होगा
भरा रहे धनसार घर का,
आय में बरकत बढ़ेगी
जब लक्ष्मी घर की हंसती रहेगी
