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Rashmi Sthapak

Others

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Rashmi Sthapak

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दोहा-दरबार

दोहा-दरबार

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सर्द हवा लेकर चली,

भूली- बिसरी याद।

चौबारे पर धूप से, 

करती है संवाद।।

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छन- छन कर उजली हुई,

इठलाती है धूप।

गेहूं की बाली पके,

स्वर्णिम ऐसा रूप।।

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सहमा-सा सूरज फिरे,

हवा हुई बलवान।

चमक-चमक इतरा रहा,

चंदा बेईमान।।

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रंग-बिरंगे फूल खिले,

फैली दूर सुगंध।

मीठे-मीठे हो गए,

तितली से अनुबंध।।

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मौसम फिर ले आ गया,

बचपन का यह रूप।

जादू के दिन रात थे,

मुट्ठी में थी धूप।।

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हरे हुए फिर शीत में,

लगे पुराने घाव।

यादों के जलने लगे,

घर- घर रोज अलाव।।

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