धागा प्रीत का
धागा प्रीत का
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मैंने देखा है,
उसको साल भर उसे संभालते
उसके एक एक मोती को
फिर हाथ से समेटते
हो जाये वो परेशान
काॅपी में हो जाए निशान
उसके गीलेपन से।
हो जाए वो बेरंग पर फिर भी
उसकी शान दिखलाते।
फिर अगली राखी में,
ये कहते देख मैंने रखा हैं।
संभाल कर इसे।
और तू कहती हैं,
परवाह नहीं है तुझे
मेरे राखी के धागे की।
बस जैसे रखता है,
धागे का मान।
करना सभी स्त्रियों का सम्मान।
माँ, बहन, भाभी या हो पत्नी तेरी
तू बनना सबका अभिमान!!!