देखो छटा निराली
देखो छटा निराली
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दिगपाल छंद
देखो छटा निराली, मन को सदा लुभाएँ।
प्रियतम तुम्हें पुकारें, बहकी हुईं हवाएँ।।
है शाम ये महकती, कचनार की कली सी ।
आओ मिलें यहाँ पर, खुशियाँ सदा भरी सी ।।
देखो छटा निराली, आओ हमें लुभाती।
दीवानगी बड़ी है, मन को बड़ी सुहाती ।।
सब कुछ लगे सुहाना, प्रीतम गले लगाओ ।
मन मस्त हो रहा है, देखो न गीत गाओ ।।