चलो आज कुछ लिखतें हैं ।
चलो आज कुछ लिखतें हैं ।
एक अर्सा हुआ
भावनाओं की कलम पकड़े
चलो आज कुछ लिखतें है
दबे से है एहसास कितनें
इस दिल में
चलो आज कागज पर उतारतें हैं
चलो आज कुछ लिखते हैं
जिंदगी के वो हिस्से हो किसी से बाँटा नहीं
वो किस्से जो किसी को सुनाया नहीं
रिवाजों की कड़ी से बंधे हुए
डर की आतंकियों से जकड़े हुए
उन ख्वाहिशों की कैदियों को
चलो आज आज़ाद करते हैं
चलो आज कुछ लिखते हैं
वो आवाज़ जो किसी ने सुना नहीं
वो नगमे जो कभी गुन गुनाया नहीं
सख़्त कपड़ों से लपेटे हैं
जिसकी मुंह सदियों से
चलो उन खामोशियों को
आज कुछ अल्फ़ाज़ देते हैं
चलो आज कुछ लिखते हैं
वो ख़्वाब जो मेरे आँखों में जन्मे
मेरे साथ हँसे ,मेरे साथ रोये
और मेरे आँखों में सो भी गए
चलो सोए हुए उन ख्वाहिशों को
आज फ़िर से जागते है
उन अधूरे ख्वाबों को पूरे करने की
एक कोशिश और करते हैं
चलो आज कुछ लिखते हैं
एक अर्सा हुआ
भावनाओं की कलम पकड़े
चलो आज कुछ लिखते हैं ।
यह कविता मैंने बहुत दिनों तक कागज़ कलम से दूर अपने व्यक्तिगत समस्याओं में डूबे रहने के पश्चात ,
अपने सारे अनकहें बातों को ,अपने भावनाओं को दिल से उतार कर पन्नों पर रख देने की कोशिश है ।
मेरे खामोशियों को आवाज़ देने की कोशिश है।
