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Ragini Rawat

Abstract

4.2  

Ragini Rawat

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बोली रेशम की डोरी

बोली रेशम की डोरी

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न कोई ऐसी बहना है अब न कोई, ऐसा भाइया

राखी का जो पव॔ मनाए निस्वार्थ भाव,से मैया।


खुद जननी यह सोच में बैठी कहां हो,गयी भूल।

भाई-बहन के बीच में क्यों आए राग-द्वेष,के शूल।।


कौन सुनाए -कौन बताए इन्हें राखी की,प्यारी बातें ।

रेशम की इक डोर से जुड़ जाए खून से,बढ़कर नाते।।


कहीं अभाव समय का है तो कहीं जज़्बातों,की पीड़ा।

कहीं अभाव धन का है तो कहीं लालच,का कीड़ा।।


चीर बाॅधकर पांचाली ने घाव पर मर्म लगाया।

चीरहरण में बढ़ाकर साडी कान्हा ने (भाई का) धर्म निभाया ।

 

राखी पव॔ की गरिमा के आगे हर एक अपना ,शीश झुकाए।

मुहॅ बोली बहना के खातिर हुमायूं दिल्ली से, दौड़कर आए।।

 

भारत की हम बहू- बेटी हैं और वीर सिपाहियों ,की बहना ।।

रक्षासूत्र में दुआएँ भेजें हमारी माटी का क्या कहना।।

 


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