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Utkarsh Khare

Abstract

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Utkarsh Khare

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औज़ार

औज़ार

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इक अजब रिश्ता है

इन औज़ारों से मिरा,

मिरे अज्दाद कहा करते थे

इन औज़ारों की इबादत करो,


मुझे क्या पता था जिन

औज़ारों को बचपन के खिलौने 

समझ मैं खेलता था

आज वो मिरी ज़रूरत बन जाएँगे


मैं आज भी इन औज़ारों की

इबादत नहीं करता

शायद ख़ौफ़ ज़दा हूँ मैं आज तलक

कहीं ये औज़ार मिरे 

बच्चों के खिलौने ना बन जाएँ।


इस नज़्म के ज़रिये मैं एक मज़दूर की

मानसिक दशा व्यक्त कर रहा हूँ।


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